बढ़े हुए लॉकडाउन के बीच खेती-किसानी और स्वरोजगार के कामों के साथ कारोबारी गतिविधियों को सशर्त अनुमति देने वाले जिन दिशा-निर्देशों की प्रतीक्षा हो रही थी वे सामने आ गए। चूंकि ये दिशा-निर्देश 20 अप्रैल से देश के उन इलाकों में प्रभावी होने हैं जहां कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं होगा इसलिए राज्य सरकारों और उनके स्थानीय प्रशासन को उन पर सही तरह से अमल की तैयारी का अवसर मिल गया है। इन तैयारियों को अंतिम रूप देते समय यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जिन कार्यो के लिए अनुमति मिली है वे पूरी तौर पर दिशा-निर्देशों के अनुरूप हों।

बेहतर होगा कि अगले दो-तीन दिनों में संबंधित संस्थानों और व्यक्तियों को इससे अच्छी तरह अवगत कराया जाए कि क्या करना है और क्या नहीं? लोगों को रियायतों के साथ प्रतिबंधों के बारे में भी पूरी जानकारी दी जानी चाहिए और साथ ही एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाए रखने की अनिवार्य आवश्यकता के बारे में भी। यह तय है कि 20 अप्रैल से राज्य सरकारों और उनकी एजेंसियों की जिम्मेदारी बढ़ने वाली है, क्योंकि एक ओर जहां उन्हें रुके हुए चुनिंदा कामों को संचालित कराना है वहीं इसके प्रति सचेत भी रहना है कि कोरोना वायरस का संक्रमण सिर न उठाने पाए। एक तरह से उनके सामने दोहरी चुनौती है, लेकिन उसका सामना करने के अलावा और कोई उपाय भी नहीं।

दिशा-निर्देशों के पालन में आम जनता की जागरूकता और उसके सहयोग की एक बड़ी भूमिका होगी, क्योंकि कोरोना के खिलाफ जंग तभी सही ढंग से लड़ी जा सकती है जब लोग इसे लेकर सजग रहें कि उन्हें क्या बिल्कुल भी नहीं करना है? चूंकि सीमित कारोबारी गतिविधियां एक सीमा तक ही अर्थव्यवस्था के थमे चक्के को गति दे पाएंगी इसलिए केंद्र सरकार को जरूरत के मुताबिक अपने दिशा-निर्देशों में हेरफेर करने के लिए तैयार रहना चाहिए। नि:संदेह जीवन बचाना पहली प्राथमिकता है, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि इस प्राथमिक दायित्व का सही तरह से निर्वहन तभी हो पाएगा जब आजीविका के साधनों को गति मिलेगी।

चूंकि फिलहाल यही दिख रहा है कि जब तक कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 का टीका या फिर उसके निदान की कोई प्रभावी औषधि तैयार नहीं हो जाती तब तक दुनिया के साथ देश को कोरोना के साये में ही जीवन बिताना पड़ सकता है इसलिए प्रोत्साहन के ऐसे कदम उठाने की भी जरूरत पड़ेगी जिससे आजीविका के साधनों को भी बल मिले और इस खतरनाक वायरस का संक्रमण भी न फैलने पाए। यह एक कठिन काम है, लेकिन इसे करना ही होगा। इस कठिनाई को सरकारों और उनके प्रशासन के साथ आम जनता को भी समझना होगा।