हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक अंतत: पंचायत चुनाव अब पूर्व निर्धारित तिथि 1, 3 और 5 मई को नहीं होगा। राज्य चुनाव आयोग भी एक संवैधानिक संस्था है। उसके द्वारा घोषित चुनाव तिथि पर चुनाव न हो तो इस पर कई सवाल खड़े होते हैं। आयोग ने 31 मार्च को तीन चरणों में चुनाव कराने की घोषणा की और उसके बाद 2 अप्रैल से नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई। 9 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि थी। हिंसा और तमाम अड़चनों के बावजूद एक सप्ताह तक नामांकन प्रक्रिया चली, लेकिन विपक्षी दलों का आरोप था कि तृणमूल कांग्रेस के आतंक के कारण उनके अधिकांश उम्मीदवार नामांकन दाखिल नहीं कर पाए। विपक्षी दलों ने राज्य चुनाव आयोग से लेकर हाईकोर्ट तक में यह मुद्दा उठाया। चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों की शिकायत पर नामांकन दाखिल करने की अवधि एक दिन बढ़ा दी, लेकिन मामला पेचीदा तब हुआ जब चुनाव आयोग ने 24 घंटे के अंदर अपने फैसले को वापस ले लिया जबकि विपक्षी दलों के उम्मीदवार दूसरे दिन यानी 10 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने के लिए अपने-अपने केंद्र पर पूरी तैयारी के साथ पहुंच गए थे।

11 बजे से 3 बजे तक नामांकन दाखिल करने का समय था लेकिन राज्य चुनाव आयोग ने उसी दिन सुबह ही जब अवधि बढ़ाने संबंधी अधिसूचना रद कर दी तो नामांकन प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई। इस पर भाजपा ने उसी दिन राज्य चुनाव आयोग के विरुद्ध हाईकोर्ट में मामला दायर कर दिया। वामपंथी दल और भाजपा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंंच गए, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने यह मामला हाईकोर्ट को ही निपटाने का सुझाव दिया। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद पहले चुनाव प्रक्रिया पर अंतरिम स्थगनादेश दिया और चुनाव आयोग को भी मामले में पक्षकार बनाया गया। कई दिनों तक चली सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने नये सिरे से चुनाव की नई तिथि घोषित करने का निर्देश दिया। हालांकि पूर्व में जितने भी नामांकन हुए है वे वैध होंगे। राज्य चुनाव आयोग ने जब नामांकन के लिए एक दिन का समय बढ़ाया तो आखिर उसे क्यों रद किया? बात यहीं से बिगड़ी। छोटी से गलती या चूक होने से पूरी चुनाव प्रक्रिया प्रभावित हुई और नए सिरे से तिथि घोषित करने की नौबत आई तो इससे राज्य चुनाव आयोग की साख पर ही बट्टा लगा है।

[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]