उत्तराखंड सरकार के व्याधि निधि सहायता के सरलीकरण के फैसले की सराहना की जानी चाहिए। जैसा कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने घोषणा की है कि व्याधि निधि का अस्सी फीसद बजट जिलाधिकारियों के अधीन रहेगा और उन्हीं के स्तर पर पात्र जरूरतमंद लोगों को इससे वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाएगी। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए शुरू की गई इस योजना में अभी तक इतने पेंच हैं कि, पात्र ऐड़ियां रगड़ते-रगड़ते थक हार रहे, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिल पा रही है।

यही वजह है कि प्रक्रिया के जटिलता के चलते पात्र लोग इसमें दिलचस्पी लेने की बजाय दूसरे माध्यमों से सहायता की राह ताकने को मजबूर हैं। लेकिन, अब शायद तस्वीर बदल जाए, पात्रों को योजना का लाभ मिलने लगे। नई होने जा रही व्यवस्था में लोगों को सरकार ने स्वास्थ्य महानिदेशालय के चक्कर काटने से निजात जो दे दी है।

यह ठीक भी है, महानिदेशालय के पास वैसे ही रूटीन कामकाज का इतना बोझ है कि वह योजना के लिए समय नहीं निकाल पाता है। हालांकि, खुले तौर पर महकमे के अफसरानों में कोई भी इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करते, लेकिन मुसीबत के मारों की पीड़ा यह बताने के लिए काफी है कि योजना का लाभ लेने के लिए उन्हें क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं। सरकार ने यह भी इरादा जताया कि आने वाले दिनों में लीवर ट्रांसप्लांट जैसे इलाज को भी राज्य व्याधि निधि का हिस्सा बनाया जाएगा। बीपीएल परिवारों के लिए यह बड़ी सौगात होगी।

देर से सही, सरकार के योजना के सरलीकरण की दिशा में कदम तो उठाया। इसे सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए। बशर्ते कि तंत्र ईमानदारी से अपने दायित्व निभाए। यह बात हम इसलिए नहीं कह रहे हैं कि सरकार की मंशा पर शक है, मगर इस तरह की योजनाओं का अभी तक का हश्र इन सवालों को जन्म दे रहा है। लिहाजा, सरकार को केवल और केवल दिशा-निर्देश देकर चुप नहीं बैठना चाहिए। उसे तंत्र की निगरानी के लिए सिस्टम विकसित करना होगा।

क्योंकि, पारंपरिक अंदाज में काम करके किसी बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है। बात योजनाओं की ही नहीं, समूचे स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल किसी से छिपा नहीं हैं। सिस्टम की लापरवाही के चलते मरीजों के मरने का सिलसिला शहर से लेकर गांवों तक थम नहीं रहा है। दरअसल, योजनाओं की कमी नहीं, बस इच्छाशक्ति और जवाबदेही का अभाव इसके मूल में बना हुआ है।

सरकार को सेहत को जुबां पर नहीं, वाकई में अपनी प्राथमिकताओं को शुमार करना होगा, तभी कुछ सुधार की बात सोची जा सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार तमाम परिस्थितियों पर गंभीरता से विचार करेगी, लोगों के स्वास्थ्य के प्रति तंत्र को संवेदनशील बनाने की दिशा में प्रभावी कदम उठाएगी।

राज्य संपादकीय- उत्तराखंड