प्रधानमंत्री ने पहले राष्ट्र के नाम संबोधन और फिर मन की बात कार्यक्रम के माध्यम से देशवासियों को जिस तरह कोरोना वायरस और उसके बदले हुए प्रतिरूप ओमिक्रोन से सतर्क रहने की अपील की, उससे यह स्वत: स्पष्ट हो जाता है कि संक्रमण के फिर से सिर उठा लेने का खतरा पैदा हो गया है। यद्यपि दक्षिण अफ्रीका में पनपे और वहां से दुनिया भर में फैले ओमिक्रोन से संक्रमित रोगियों की संख्या अपने देश में अभी साढ़े चार सौ के आसपास है, लेकिन सावधान रहने की आवश्यकता तो बढ़ ही गई है। यह आवश्यकता इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि देश के कुछ इलाकों में कोरोना वायरस के एक अन्य प्रतिरूप डेल्टा से संक्रमित होने वाले लोग भी बढ़ रहे हैं। नि:संदेह इस सबके बाद भी भयभीत होने की जरूरत नहीं, लेकिन कोविड प्रोटोकाल का पालन करने और भ्रम एवं अफवाहों से बचने को तो प्राथमिकता दी ही जानी चाहिए।

आवश्यक यह भी है कि जिन लोगों ने अभी कोविड रोधी टीके की पहली खुराक नहीं ली अथवा दूसरी खुराक लेने में देरी कर दी है, वे समय न गंवाएं। अब टीके सहज उपलब्ध हैं और टीकाकरण अभियान गांव-देहात में भी सुगमता से चलाया जा रहा है। वास्तव में हमारा टीकाकरण अभियान उस संकल्पशक्ति और सामर्थ्य की मिसाल है जो भारत ने कोविड महामारी का सामना करने में दिखाई और वह भी तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद।टीकाकरण अभियान की सफलता के साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि आज भारत महामारी का सामना करने में कहीं अधिक सक्षम है। एक साल पहले हम जिन वस्तुओं के आयात पर निर्भर थे, आज उनका निर्यात कर रहे हैं। इनमें मास्क, पीपीई किट और दवाओं के साथ टीके भी शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में न केवल इसकी जानकारी दी कि देश ने महामारी का मुकाबला करने के लिए किस तरह पूरी तैयारी कर रखी है, बल्कि यह भी घोषणा की कि तीन जनवरी से 15 से 18 साल के किशोरों के टीकाकरण का अभियान शुरू करने के साथ 10 जनवरी से स्वास्थ्य कर्मियों के अतिरिक्त 60 साल से अधिक उम्र के उन लोगों को टीके की एहतियाती खुराक भी दी जाएगी जो गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं। ऐसा किया जाना समय की मांग थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में अन्य आयु वर्ग के लोगों के लिए बूस्टर डोज की व्यवस्था की जाएगी और बच्चों के लिए भी टीकाकारण कार्यक्रम शुरू होगा। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक लोगों को संक्रमण से बचे रहने के उपायों पर गंभीरता से अमल करना होगा, ताकि उस पर लगाम लगी रहे, तीसरी लहर का खतरा दूर हो और आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों पर कोई बुरा असर न पड़े। यह समझना होगा कि जान के साथ जीविका के साधनों को भी बचाने की जरूरत है।