रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा यही रेखांकित कर रही है कि अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों के साथ अपने संबंधों को नए स्तर पर ले जाने के बीच भारत अपने पुराने सहयोगी से भी संबंध मजबूत बनाए रखना चाहता है। मौजूदा स्थितियों में इसकी आवश्यकता भी है, क्योंकि अमेरिका की ओर से भारतीय हितों के प्रति सकारात्मक रवैये का प्रदर्शन करने के बावजूद इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह कुछ मसलों पर अपनी ही चलाने में लगा हुआ है। इस क्रम में प्रतिरक्षा संबंधी भारतीय हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की भी आशंका है। अमेरिका यह तो तय कर सकता है कि वह रूस के साथ अपने संबंध कैसे रखे, लेकिन उसे इसका अधिकार नहीं कि वह अन्य देशों के बारे में यह तय करे कि उनके रूस से किस तरह के संबंध हों? डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका फिलहाल यही कर रहा है।

अमेरिका ने जिस तरह एक बार फिर दुनिया के देशों को यह चेतावनी दी कि रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने वाले देशों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी वह कुल मिलाकर उसके मनमाने रवैये का ही परिचायक है। यह रवैया दुनिया को अपने ढंग से चलाने की उसकी सोच को ही दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय संबंध किसी एक देश के दिशा-निर्देशों पर नहीं चलते। बात केवल रूस के साथ रिश्तों की ही नहीं, बल्कि ईरान के साथ संबंधों की भी है। अच्छा हो कि इन दोनों ही देशों के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के मामले में भारत अमेरिका के समक्ष यह स्पष्ट करने में संकोच न करे कि वह अपनी सीमाओं का उल्लंघन करने से बचे।

यह सही है कि हाल के समय में अमेरिका भारत के आर्थिक हितों के साथ-साथ हमारी रक्षा जरूरतों की भी चिंता कर रहा है, लेकिन इस तथ्य को ओझल नहीं किया जा सकता कि जहां वह निगरानी और खुफिया तंत्र से जुड़े हथियार और तकनीक ही भारत को उपलब्ध करा रहा है वहीं रूस से सेनाओं की मारक क्षमता बढ़ाने वाले उपकरण और हथियार प्राप्त हो रहे हैं। यह भी एक कारण है कि रूस के साथ संबंधों में मधुरता लाना समय की मांग बन गई है। भारत और रूस के बीच रक्षा ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी नजदीकी सहयोग का दशकों पुराना इतिहास रहा है। यह सहयोग टिकाऊ भी रहा है और भरोसा बढ़ाने वाला भी।

मौजूदा समय जब भारत हरसंभव तरीके से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश कर रहा है तब रूस के साथ करीबी साझेदारी और महत्वपूर्ण हो जाती है। रूस ने न केवल परमाणु ऊर्जा को लेकर भारत को आश्वस्त किया है, बल्कि उसकी ओर से भारतीय कंपनियों के लिए रूस में तेल ब्लॉक खरीदने की राह तैयार करने का भी भरोसा दिलाया जा रहा है।

यह देखना होगा कि पुतिन की भारत यात्रा के दौरान कौन-कौन से समझौते हो पाते हैं, लेकिन इतना तो है ही कि दोनों देशों की एक और सालाना बैठक उनके रिश्तों को एक नए आयाम पर ले जाएगी। इसकी झलक इससे भी मिलती है कि इस बैठक के जरिये भारत और रूस के बीच अगले एक दशक के सहयोग का एजेंडा तैयार होने की बात कही जा रही है।