आखिरकार महाराष्ट्र में वही हुआ जिसका अंदेशा था। राज्यपाल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की जो सिफारिश की उस पर राष्ट्रपति ने मुहर लगा दी। इसी के साथ शिवसेना की तीखी आपत्ति तो सामने आई ही, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी नाखुशी जताने में देर नहीं की। शिवसेना राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गई है, लेकिन यह व्यर्थ की कवायद है। यह जितना हास्यास्पद है उतना ही विचित्र भी कि शिवसेना राज्यपाल को कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के समर्थन पत्र देने के बजाय सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पसंद कर रही है।

क्या यह वही शिवसेना नहीं जो चंद दिनों पहले तक यह जाहिर कर रही थी कि उसके लिए सरकार बनाना बायें हाथ का खेल है? वह आनन-फानन में सरकार बना लेने की खुशफहमी से इस कदर ग्रस्त थी कि कांग्रेस से समर्थन मिलने का भरोसा मिलने के पहले ही उसने भाजपा से नाता तोड़ने का फैसला कर लिया। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि सरकार बनाने में मिली नाकामी से खिसियाई शिवसेना राष्ट्रपति शासन के खिलाफ शोर मचाकर यह दिखाना चाह रही है कि उसके साथ अन्याय हो गया। इस चीख-पुकार से कुछ हासिल होने वाला नहीं है, क्योंकि राष्ट्रपति शासन लगने का यह अर्थ नहीं कि अब कोई सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर सकता।

चूंकि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भी विधानसभा भंग नहीं की गई है इसलिए शिवसेना या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी आवश्यक बहुमत जुटाकर कभी भी सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती हैं। आखिर उन्हें ऐसा करने से किसने रोका है? इस दलील में ज्यादा दम नहीं कि राज्यपाल को और इंतजार करना चाहिए था, क्योंकि एक पखवारा बीत गया है और महाराष्ट्र राजनीतिक अनिश्चितता में झूल रहा है। वहां का शासन-प्रशासन एक तरह से ठप है। यह आदर्श स्थिति नहीं। सरकार बनने का इंतजार करते रहने का कोई मतलब नहीं। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि राजनीतिक दल राज्यपाल और केंद्र सरकार के फैसले को कोसने के बजाय इस सवाल का जवाब दें कि वे सरकार क्यों नहीं बना पा रहे हैं?

चूंकि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नए सिरे से सक्रिय हो गई हैं इसलिए हो सकता है कि कुछ समय बाद कोई सरकार बन जाए। यदि यह सरकार शिवसेना के नेतृत्व में बनती है तो उसे कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के समक्ष नतमस्तक ही रहना होगा। जब हर कोई शिवसेना की इस संभावित दयनीय दशा की कल्पना कर हैरान है तब उसके सत्तालोलुप नेता इससे अनजान बने रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। यह एक तरह का आत्मघात ही है।