देश-दुनिया में पत्रकारिता का एक हिस्सा किस तरह कौआ कान ले गया की तर्ज पर खबरें गढ़ने लगा है, इसका ताजा उदाहरण है अमेरिकी अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की वह खबर जिसमें यह साबित करने की कोशिश की गई कि सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने तेलंगाना के विधायक राजा सिंह की आपत्तिजनक पोस्ट हटाने में इसलिए आनाकानी की, क्योंकि वह भाजपा के हैं। एक खास एजेंडे के तहत लिखी गई इस खबर का आधार बना फेसबुक के किसी अनाम-गुमनाम कर्मचारी का यह कथित कथन कि कंपनी ने राजा सिंह की आपत्तिजनक पोस्ट हटाने से इसलिए गुरेज किया, क्योंकि उसे अपने व्यावसायिक हितों की चिंता थी।

इस खबर को पढ़कर कोई इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि राजा सिंह भाजपा के बड़े कद्दावर नेता हैं और वह तेलंगाना के साथ-साथ भारत सरकार की रीति-नीति तय करने में भी बड़ी भूमिका निभाते होंगे। औरों का पता नहीं, लेकिन राहुल गांधी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे और उन्होंने यह आरोप उछालने में देर नहीं की कि फेसबुक को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नियंत्रित कर रहे हैं। यह उतना ही हास्यास्पद है जितना अमेरिकी अखबार की ओर से यह साबित करने की कोशिश कि राजा सिंह भाजपा के इतने बड़े नेता हैं कि फेसबुक भी उनकी आपत्तिजनक पोस्ट हटाने की हिम्मत नहीं जुटा सका।

अमेरिकी अखबार किस तरह अपने एजेंडे को अंजाम देने पर आमादा था, इसका पता इससे चलता है कि उसने यह जानने की भी जहमत नहीं उठाई कि राजा सिंह का फेसबुक अकाउंट उनका ही है या नहीं? राजा सिंह की मानें तो उनका कोई फेसबुक अकाउंट ही नहीं और जो था वह 2018 में हैक हो गया था। पता नहीं सच क्या है, लेकिन इतना अवश्य है कि राहुल गांधी ऐसी खबरों की तलाश में ही रहते हैं जो मोदी सरकार, भाजपा अथवा संघ को कठघरे में खड़ा करने में उनकी सहायता कर सकें। ऐसा करने में कोई बुराई नहीं, लेकिन कम से कम उन्हें अपने ट्रोल की तरह व्यवहार करने से तो बचना चाहिए।

उनकी ओर से तो वह काम किया जा रहा है, जो सोशल मीडिया पर सक्रिय तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ता अथवा पार्टी समर्थक करने में लगे हुए हैं। क्या इन कार्यकर्ताओं और समर्थकों की आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट या फिर उनके अभद्र ट्वीट के आधार पर किसी के लिए इस नतीजे पर पहुंचना उचित होगा कि कांग्रेस या फिर गांधी परिवार के रसूख के कारण सोशल मीडिया कंपनियां अपने नियमों से समझौता करने में लगी हुई हैं? बेहतर हो कि भाजपा राहुल को उनकी ही भाषा में जवाब देने के बजाय इस पर विचार करे कि छिछले आरोप-प्रत्यारोप में उलझना कितना जरूरी है?