अमृतसर के वाघा बॉर्डर की तर्ज पर जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र को विकसित करने का सपना राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने वर्ष 2002 में राज्य की बागडोर संभालने के बाद देखा था, लेकिन सोलह साल बीत जाने के बाद भी यह योजना सिरे नहीं चढ़ पाई। सिर्फ योजनाओं का नाम बदल दिया गया। विगत दिवस विधान परिषद में भाजपा पार्षद ने पूछा कि टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए क्या योजनाएं हैं तो पर्यटन मंत्री ने बताया कि भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर स्थित सुचेतगढ़ गांव को स्वदेश योजना के तहत लाया जाएगा। जीरो लाइन स्थित सुचेतगढ़ को वाघा बॉर्डर की तर्ज विकसित करने की बात 16 सालों से दोहराई जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। दावे तो बड़े बड़े किए गए लेकिन क्या बार्डर टूरिज्म का ख्वाब सरकार पूरा करेगी यह देखना होगा? इसमें कोई शक नहीं है कि अगर बार्डर टूरिज्म को बढ़ावा देना है तो इसके लिए सैलानियों को सहूलियतें भी देनी होंगी। अप्रोच रोड के साथ पर्यटकों के बैठने और खाने-पीने के इंतजाम का भी ख्याल रखना होगा। सैलानियों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाएं जाएंगे, इस पर मंथन की जरूरत है। बॉर्डर पर सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। क्या ऐसी स्थिति में बार्डर टूरिज्म को बढ़ावा मिल सकेगा, इसके लिए सैलानियों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए जाएगें, सरकार इसे भी स्पष्ट करे।

बार्डर टूरिज्म के दावे करना नेताओं के लिए जुमले बन गए हैं। इसमें गंभीरता कम राजनीति ज्यादा झलकती है। नियंत्रण रेखा से पाकिस्तान से व्यापार का सपना भी पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद ने देखा और वो साकार भी हुआ। इसका एक बड़ा कारण यह था कि राज्य में उन दिनों हालात सामान्य थे। सीमा पर गोलाबारी की घटनाएं कम थी। लेकिन मौजूदा समय में क्रॉस एलओसी ट्रेड थम चुका है। अगर सरकार बॉर्डर टूरिज्म को विकसित ही करना चाहती है तो इसे चरणबद्ध तरीके से शुरू करे। इसमे कोई दो राय नहीं कि भारत-पाक की सरहद को देखने के लिए पर्यटक पहुंचते हैं, बशर्ते कि जब हालात सामान्य हों। सरकार को चाहिए कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए जम्मू संभाग के कई ऐसे मनोरम स्थल है, जिन्हें विकसित करे।