असम के कोकराझार में एक भीड़ भरे बाजार में प्रतिबंधित संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के संदिग्ध आतंकियों ने जिस तरह बम-बंदूकों से धावा बोलकर एक दर्जन से अधिक लोगों की जान ले ली वह इसलिए कहीं अधिक गंभीर है, क्योंकि असम में इस तरह का यह पहला हमला है। अभी तक असम और पूवरेत्तर के अन्य राज्यों के शहरी इलाकों में इस तरह के हमले नहीं देखे गए। इस हमले के बाद राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार को इसलिए और अधिक चेतने की जरूरत है, क्योंकि स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों के चलते पर्याप्त चौकसी बरती जा रही थी और फिर भी आतंकी आसानी से हमले को अंजाम देने में सफल रहे।

चेतने की एक अन्य वजह असम में भाजपा की सरकार बनने के बाद आतंकियों के इस तरह सिर उठाने का यह पहला मामला भी है। अब इस तरह की बातों के लिए कोई गुंजाइश नहीं बनती कि सटीक खुफिया सूचना नहीं थी या फिर राज्य और केंद्र सरकार की अन्य एजेंसियों के बीच अपेक्षित तालमेल नहीं था। चूंकि असम में भाजपा सरकार के आसीन होने के बाद यह उम्मीद भी बढ़ गई थी कि अब प्रतिबंधित अलगाववादी-आतंकी संगठनों के खिलाफ कहीं अधिक सख्ती होगी इसलिए इस हमले के बाद राज्य सरकार को कई कठिन सवालों से भी दो-चार होना होगा। जितना जरूरी इन सवालों का जवाब दिया जाना है उतना ही नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड और ऐसे ही अन्य संगठनों को निर्ममता से कुचलना भी।

आम तौर पर पूवरेत्तर के अलगाववादी गुटों को उग्रवादी समूहों के तौर पर परिभाषित किया जाता है, लेकिन कोकराझार हमले ने नए सिरे से यह स्पष्ट किया कि उन्हें आतंकी संगठनों के तौर पर ही देखा जाना चाहिए और उनसे उसी तरह निपटा भी जाना चाहिए। हिंसा का सहारा लेकर अपनी मांगें मनवाने की कोशिश करने वाले हथियारबंद संगठन पूवरेत्तर में इसलिए रह-रहकर सिर उठाते रहते हैं, क्योंकि उनके खिलाफ चलाए जाने वाले अभियान उनके खात्मे तक नहीं चलते। यह ठीक है कि कोकराझार में हमले के लिए जिम्मेदार तत्वों के खिलाफ सघन अभियान छेड़ दिया गया है, लेकिन आम तौर पर होता यह है कि ऐसे तत्व जैसे ही दुबकते हैं, उनके खिलाफ जारी अभियान भी शिथिल हो जाता है। यह सिलसिला बंद होना चाहिए। देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने वाले संगठनों पर किसी भी तरह की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए।

उन्हें न तो पूवरेत्तर में कहीं सिर छिपाने की जगह मिलनी चाहिए और न ही पड़ोसी देशों की सीमाओं में। पूवरेत्तर में ऐसे कई हथियारबंद संगठन हैं जो पड़ोसी देशों और खास तौर पर म्यांमार और चीन में अपना ठिकाना बनाने में सफल हैं। पहले कुछ संगठन बांग्लादेश में भी ठिकाना बनाए हुए थे, लेकिन वहां की सरकार के सहयोगी रुख के बाद स्थिति बदली है। पूवरेत्तर के कई अलगाववादी गुट हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौट चुके हैं, लेकिन आम तौर पर उन्होंने तभी ऐसा किया है जब उन पर चौतरफा दबाव बनाया गया। यह आवश्यक है कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड की भी चौतरफा घेरेबंदी की जाए। चूंकि इसी संगठन का एक धड़ा हिंसा का रास्ता त्याग चुका है इसलिए अन्य अलगाववादी गुटों को भी हिंसक गतिविधियां छोड़ने के लिए विवश किया जाना चाहिए। यह काम पूरी ताकत से करना होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसे संगठनों को काबू में करने के लिए सीमित अवधि वाले अभियान बहुत प्रभावी नहीं रहे हैं।

(राष्ट्रीय संपादकीय)