राज्य में लगातार गिरती कानून व्यवस्था जहां चिंता की बात है, वहीं प्रदेश को नक्सलियों व उग्रवादियों से मुक्त करने में जुटे सुरक्षा बल के जवानों के गिरते मनोबल की बात उससे भी ज्यादा गंभीर चिंता की बात है। मुख्यमंत्री रघुवर दास और डीजीपी डीके पांडेय ने झारखंड को नक्सलियों व उग्रवादियों से मुक्त करने को लेकर समय सीमा तय की है। इस समयसीमा के अंदर प्रदेश को पूरी तरह नक्सलमुक्त करने के अभियान में सीआरपीएफ और जगुआर के जवान स्थानीय पुलिस की मदद से पूरी शिद्दत के साथ जुटे हैं। लेकिन उनके इस अभियान को सबसे बड़ी चुनौती पत्थलगड़ी से मिल रही है। पत्थलगड़ी अभियान को लेकर खूंटी में स्वयंभू ग्रामसभा के कड़े रुख से पुलिस और सुरक्षाबल के जवान अब हताश होने लगे हैं। इस स्वयंभू ग्रामसभा के लोग लगातार जवानों और अधिकारियों को बंधक बना रहे हैं। देश विरोधी और सरकार विरोधी नारे लगाए जाते हैं। बावजूद जवान हाथ पर हाथ बांधे खड़े रहते हैं। जवानों में निराशा की यह बड़ी वजह है। ताजा मामला खूंटी जिले के अड़की क्षेत्र में सामने आया है। यहां सीआरपीएफ व जगुआर के कैंप हैं। यहां के जवानों व अधिकारियों ने मुख्यालय वापस भेजने की मांग अपने वरीय पदाधिकारियों से की है। जवानों व अधिकारियों का कहना है कि उन्हें जिस मकसद के लिए क्षेत्र में तैनात किया गया था, वह पूरा नहीं हो रहा है। उसके उलट क्षेत्र में अशांति चरम पर है। स्वयंभू ग्रामसभा से जुड़े लोगों द्वारा उनके कार्य में रुकावट एवं क्षेत्र में नहीं जाने का दबाव दिया जा रहा है। इससे जवानों का मनोबल टूट रहा है। अराजक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने की खुली छूट न मिलने से जवानों में निराशा फैलना स्वाभाविक भी है। जल्द ही इसका समाधान न निकला तो राज्य को नक्सलमुक्त करने का सपना पूरा नहीं हो सकेगा। वहीं अराजक तत्वों का मनोबल भी बढ़ जाएगा। इसलिए बहुत जरूरी है कि इस पूरे मामले पर सरकार व प्रशासनिक अमला तत्काल एक्शन में आए और जवानों के गिरते मनोबल को संभालने के लिए कारगर कदम उठाए। प्रदेश के 24 में से 17 जिले नक्सल प्रभावित हैं। इन जिलों में अगर शांति दिख भी रही है, तो यह सुरक्षा बलों के कारण ही संभव है। इसलिए जरूरी है कि सुरक्षा बलों के गिरते मनोबल के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं ताकि नक्सली अपने मंसूबों में कामयाब न हो सकें, नहीं तो प्रदेश की स्थिति दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती चली जाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड]