अमेरिका यात्रा के दौरान बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में राहुल गांधी ने परिवारवाद की राजनीति का बचाव करते हुए जिस तरह उस पर मुहर लगाई और यहां तक कह दिया कि भारत ऐसे ही चलता है उससे उन्होंने जाने-अनजाने न केवल अपनी, बल्कि कांग्रेस और साथ ही भारतीय राजनीति की भी गलत छवि पेश करने का काम किया। यह आश्चर्यजनक है कि उन्होंने अखिलेश यादव, एमके स्टालिन और ऐसे ही कुछ अन्य नेताओं का उदाहरण देते हुए यह कहने में भी संकोच नहीं किया कि अभिषेक बच्चन और मुकेश अंबानी भी परिवारवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी मानें तो इन्फोसिस में भी ऐसी ही परिपाटी की नींव पड़ चुकी है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के लिए सिनेमा, उद्योग जगत और राजनीति में कोई फर्क नहीं या फिर वह एक राजनेता के तौर पर अपने को उतना ही जवाबदेह मानते हैं जितना कि सिनेमा और उद्योग जगत के लोगों को। यह समझना कठिन है कि वह यह क्यों नहीं देख सके कि राजनीति में तमाम नेता ऐसे हैैं कि जो परिवारवाद के बगैर अपनी जगह बनाने और छाप छोड़ने में सफल रहे हैैं। अगर उन्हें परिवारवाद पर मुहर लगानी ही थी तो फिर वह अभी तक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और विशेष रूप से युवा कार्यकर्ता के समक्ष यह दावा क्यों कर रहे थे कि उनका लक्ष्य युवाओं को राजनीति में आगे लाने और उन्हें अवसर उपलब्ध कराने का है? कम से कम उन्हें तो यह याद होना चाहिए कि इसके लिए उन्होंने विधिवत एक अभियान भी छेड़ा था। क्या यह मान लिया जाए कि उन्होंने इस अभियान का परित्याग करने के साथ ही परिवारवाद की राजनीति के समक्ष हथियार डाल दिए हैं? जो भी हो, उन्होंने परिवारवाद की वकालत करके उन युवा कांग्रेसी नेताओं को निराश करने का ही काम किया जो पार्टी में आगे बढ़ने की लालसा रखते हैैं और यह उम्मीद लगाए हैैं कि पार्टी उपाध्यक्ष इसमें उनके मददगार साबित होंगे।
राहुल गांधी ने अपने संबोधन में अन्य अनेक मसलों पर भी अपने विचार व्यक्त किए, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें यह ख्याल नहीं रहा कि अमेरिका में वह भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैैं, न कि केवल कांग्रेस का। उन्होंने कश्मीर को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में जिस तरह यह साबित करने की कोशिश की कि नरेंद्र मोदी ने पीडीपी से हाथ मिलाकर कश्मीर को संकट में डालने का काम किया उससे तो ऐसा लगता है कि यह तय करने का अधिकार केवल कांग्रेस को है कि किसी राज्य में कोई राजनीतिक दल किसे अपना सहयोगी बनाए और किसे नहीं? यदि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस अपनी राजनीतिक सुविधा और आवश्यकता के हिसाब से पीडीपी अथवा नेशनल कांफ्रेंस से हाथ मिला सकती है तो यही काम भाजपा क्यों नहीं कर सकती? यह मान्यता तो एक तरह से सामंती सोच का परिचायक है कि जो कांग्रेस कर सकती है वह दूसरे दल नहीं कर सकते। राहुल गांधी विपक्ष की नेता की हैसियत से मोदी सरकार के बारे में अपने हिसाब से अपनी बात कहने के अधिकारी हैैं, लेकिन बेहतर होगा कि वह राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर देश और विशेष रूप से विदेश में विचार व्यक्त करते समय और अधिक सतर्कता एवं परिपक्वता का परिचय दें।

[ मुख्य संपादकीय ]