अब जबकि आज ही पशुपालन घोटाले में दोषी मानकर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद समेत अन्य आरोपी को सजा होनी है, इससे जुड़े अन्य प्रसंग में झारखंड के वर्तमान मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पर अंगुली उठ रही है कि उन्होंने भी अपने प्रशासनिक कर्तव्य के अनुपालन में शिथिलता बरती। सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे मामले को नए सिरे से स्वयं राज्य के कैबिनेट मंत्री सरयू राय उठा रहे हैं। चाईबासा की तत्कालीन उपायुक्त के रूप में राजबाला वर्मा के भी कार्यकाल में यहां के कोषागार से पशुपालन मद में अधिक निकासी हुई। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक जून 1993 से जनवरी 1994 में निकासी बहुत तीव्रता से हुई। इस दौरान 12.17 करोड़ रुपये से लेकर 42.73 करोड़ रुपये निकले। इसके बाद भी यह क्रम जारी रहा। चाईबासा में उपायुक्तके पद पर राजबाला वर्मा के बाद कार्यरत रहे सजल चकवर्ती को सजा हो चुकी है। भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक की 31 मार्च 1996 को समाप्त हुए वर्ष के प्रतिवेदन में ट्रेजरी से मनमानी धन निकासी में आइएएस अफसरों की लापरवाही रेखांकित है। 1998 में सीबीआइ ने राजबाला वर्मा के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर तत्कालीन मुख्य सचिव से पत्राचार किया था और राज्य सरकार से अनुशंसा की थी कि इनपर मेजर पनिशमेंट की कार्रवाई हो। इसके बाद ढाई दर्जन से अधिक स्मार पत्र का राजबाला वर्मा ने जवाब नहीं दिया है। सरयू राय द्वारा मामला उठाए जाने और मुख्यमंत्री को पत्र लिखने के बाद तंत्र फिर से सक्रिय हुआ है। यह आश्चर्यजनक बात है कि राज्य की मुख्य सचिव ने इतने रिमाइंडर के बाद भी अपना पक्ष क्यों नहीं रखा? वे स्वयं सूबे की सबसे जिम्मेदार पद पर आसीन हैं। उनके लिए शासन की शुचिता सर्वोपरि होनी चाहिए। यह जरूरी है कि उन पर लगे आरोप का उनके द्वारा ही जवाब दिया जाना चाहिए। इससे शासन और राज्य में अच्छा संदेश जाएगा। वैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास के स्तर पर तत्काल निर्णय लेकर शासन की शुचिता बनाए रखी गई है। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि कार्मिक विभाग मुख्य सचिव से जवाब तलब करेगा। इस बाबत मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से कार्मिक को निर्देशित भी किया जा चुका है। जो सवाल उठ रहे हैं,वह केवल आइएएस राजबाला वर्मा तक नहीं हैं। सवाल यह भी है कि शासन के शीर्ष पर बैठे लोग ही जब प्रशासन की कार्रवाई को जबरन नजरअंदाज करेंगे तो नीचे के स्तर पर क्या मैसेज जाएगा। सरकार को इस पर कठोर होना होगा ताकि एक स्पष्ट संदेश जाए कि शासन के कायदे-कानून सबके लिए एक जैसा है और सभी उससे गहरे निबद्ध हैं।
हाइलाइटर
सवाल सिर्फ आइएएस राजबाला वर्मा तक नहीं हैं। सवाल यह भी है कि शासन के शीर्ष पर बैठे लोग ही जब प्रशासन की कार्रवाई को जबरन नजरअंदाज करेंगे तो नीचे के स्तर पर क्या मैसेज जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]