समझौता एक्सप्रेस कांड में सभी अभियुक्तों को बरी करने वाले न्यायाधीश के फैसले के ये अंश राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए को कठघरे में खड़े करने वाले हैं कि उसकी ओर से ऐसा कोई सुबूत पेश ही नहीं किया गया जिससे साबित होता कि आरोपितों ने अपराध किया है। उन्होंने मामले की जांच में लापरवाही को रेखांकित करते हुए इस पर दुख भी जताया कि इसी हिंसक घटना में किसी को सजा नहीं मिली।

नि:संदेह यह हैरानी की बात है कि इतनी गंभीर घटना में किसी को सजा नहीं दी जा सकी, लेकिन इस पर अफसोस व्यक्त करके कर्तव्य की इतिश्री नहीं की जा सकती। बेहतर हो कि इस मामले की जांच नए सिरे से कराने की संभावनाएं तलाशी जाएं। इसी के साथ इसकी भी छानबीन जरूरी है कि कहीं एनआइए की नाकामी के पीछे यह हवा बनाना तो नहीं था कि इस आतंकी घटना के पीछे कथित हिंदू आतंकियों का हाथ है?

इस पर हैरत नहीं कि केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने यूपीए सरकार पर यह आरोप मढ़ा कि उसके उस रवैये के कारण इस घटना के वास्तविक गुनहगार बच निकले जिसके तहत यह प्रचारित किया जाना था कि देश में हिंदू आतंकवाद जैसी समस्या उभर आई है।

ध्यान रहे कि यह पहली बार नहीं जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर यह आरोप चस्पा किया गया हो कि वह हिंदू आतंकवाद के जुमले को अस्तित्व में लाना चाह रही थी और इसी कारण उसने एनआइए के जरिये एक के बाद एक आतंकी घटनाओं में हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों को गिरफ्तार कराया।

चूंकि यह आरोप बेहद गंभीर है इसलिए यह और आवश्यक हो जाता है कि सच्चाई का पता लगाया जाए। यह काम किसी गहन जांच से ही हो सकता है और यह जांच इसलिए होनी चाहिए ताकि यह हमेशा के लिए साफ हो सके कि क्या हिंदू आतंकवाद का जुमला उछालने के लिए सचमुच कोई साजिश रची गई थी?

पता नहीं समझौता कांड के गुनहगार कौन हैं, लेकिन यह कम गंभीर बात नहीं कि एक समुदाय को बदनाम करने के लिए गंभीर मामलों की जांच से खिलवाड़ किए जाने के आरोप गंभीर सवालों की शक्ल में लगातार सामने आते रहें। यह एक तथ्य है कि जिन भी मामलों में हिंदू संगठनों के लोगों को आरोपित किया गया उनमें से अधिकांश में वे सुबूतों के अभाव में बरी हो चुके हैं।

यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि मालेगांव, मक्का मस्जिद से लेकर समझौता एक्सप्रेस कांड में आरोपित हिंदू संगठनों के सभी सदस्य बरी हो गए हैं। इस कांड में इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि प्रारंभिक छानबीन में बम विस्फोट के पीछे जेहादी आतंकियों का हाथ माना गया था और कुछ संदिग्ध आतंकियों के नाम भी सामने आए थे, लेकिन जांच जैसे ही एनआइए के पास आई वैसे ही दिशा बदल गई।

क्या यह दिशा संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने के इरादे से बदली? इस सवाल का जवाब सामने आना ही चाहिए। इसी के साथ समझौता एक्सप्रेस कांड के असली गुनहगारों की पहचान भी जरूरी है। बेहतर हो न्यायपालिका यह देखे कि इस मामले की जांच फिर से कैसे हो सकती है?