प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा सबसे गंभीर मसला है। सरकार भी इस स्थिति पर आंख नहीं मूंदना चाहती और निरंतर बदलाव के प्रयास करती दिख रही है। महिलाओं के लिए उपमंडल स्तर पर अलग थाने बनाए गए हैं। कार्यालयों को और संवेदनशील बनाने का प्रयास किया जा रहा है। महिला हेल्पलाइन पर शिकायतों का त्वरित समाधान हो रहा है। बावजूद इसके उनके खिलाफ अपराध कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं। चिंताजनक स्थिति यह है कि औद्योगिक शहरों में यह स्थिति अधिक गंभीर है। पानीपत, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ना साबित करता है कि घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं को अधिक निशाना बनाया जाता है, हालांकि यह पूरी सच्चाई नहीं है। घरों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। घरेलू हिंसा की स्थिति भी बदली नहीं है। आवश्यक है कि हमें स्वयं सचेत होना होगा। रोहतक शिक्षा के हब के तौर पर विकसित हुआ है, बावजूद इसके आंकड़े साबित करते हैं कि महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती।
संकट का सबसे बड़ा कारण है कि बेटियों को हम उनका हक देने को तैयार नहीं हैं। या तो हम उन्हें देवी बना माथे पर बैठा लेते हैं पर उन्हें अपने बराबर नहीं बैठने देना चाहते। भ्रूण हत्या के लिए पहले से बदनाम रहे हरियाणा को अपनी इस दागदार छवि को बदलने के लिए काफी यत्न करना होगा। इसके लिए लड़ाई केवल कानून के हथियार से नहीं जीती जा सकती। हमें पिछड़ी सोच पर प्रहार करना होगा। आवश्यक है कि अपने घर से शुरुआत करें। आज भी हम महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं हैं। काम के मामले में हम बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं हैं। महिलाओं के लिए बेहतर माहौल बनाना सरकार ही नहीं हम सबकी भी जिम्मेवारी है।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]