भोपाल से भाजपा उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताकर पार्टी को मुसीबत में ही डालने का काम किया। अगर उनके इस बेजा बयान को लेकर विरोधी दल भाजपा पर हमलावर हो रहे हैैं तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। यह मौका तो खुद प्रज्ञा सिंह ने उन्हें उपलब्ध कराया है। हाल के दिनों में यह दूसरी-तीसरी बार है जब प्रज्ञा सिंह ने अपने किसी अनुचित बयान से भाजपा को शर्मसार किया है। इसके पहले उन्होंने मुंबई हमले के दौरान शहीद हुए पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे को देशद्रोही बताकर पार्टी को असहज किया था।

ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी उस भूल से कोई सबक नहीं सीखा और शायद इसीलिए यह कह गईं कि अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने का काम उन्होंने भी किया था। प्रज्ञा सिंह ने नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताकर भाजपा का जैसा नुकसान किया उससे पार्टी नेतृत्व को सबक सीखना चाहिए। राजनीतिक लाभ के फेर में हर किसी को अपनाने और चुनाव लड़ाने से पहले कम से कम यह तो देखा ही जाना चाहिए कि वह शख्स पार्टी की रीति-नीति के बारे में बुनियादी समझ रखता है या नहीं? भले ही पार्टी की ओर से आपत्ति जताए जाने पर प्रज्ञा सिंह ने गोडसे का महिमामंडन करने वाले अपने बयान के लिए खेद जता दिया हो, लेकिन यह कहना कठिन है कि इससे क्षति की भरपाई हो जाएगी। प्रज्ञा सिंह ने नाथूराम गोडसे को फिर से चर्चा में लाने का जो काम किया वैसा काम कुछ और लोग भी समय-समय पर करते रहते हैैं, लेकिन वे किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं होते। वे हो भी नहीं सकते, क्योंकि इस देश में किसी के लिए भी गांधी जी के हत्यारे से हमदर्दी जताकर राजनीति करना संभव नहीं।

यह ठीक है कि प्रज्ञा सिंह अभिनेता से नेता बने कमल हासन के उस बयान से संबंधित एक सवाल का जवाब दे रही थीं जिसमें उन्होंने यह कहा था कि स्वतंत्र भारत का पहला हिंदू आतंकी नाथूराम गोडसे था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि वह गोडसे को देशभक्त बताने लगें। हालांकि कमल हासन नाथूराम गोडसे को पहला हिंदू आतंकी बताकर एक तरह से यही रेखांकित करने का बेजा काम कर रहे थे कि आतंकियों का भी मत-मजहब होता है, लेकिन हैरानी इस पर है कि वे लोग भी उनका समर्थन करने के लिए आगे आ गए जो कल तक इस पर जोर देते थे कि आतंकी का कोई धर्म नहीं होता। आखिर यह ढोंग नहीं तो और क्या है?

नि:संदेह किसी की भी गांधी के विचारों से असहमति से हो सकती है, लेकिन इस बहाने उनके हत्यारे का गुणगान करना सभ्य समाज के अनुकूल आचरण नहीं कहा जा सकता। आखिर कोई किसी हत्यारे का समर्थन कैसे कर सकता है? यह तो एक तरह से हिंसा का समर्थन करना हुआ। नाथूराम गोडसे को आज के संदर्भ में आतंकी कहे जाने पर लोगों के विचार भिन्न-भिन्न हो सकते हैैं, लेकिन इस पर कोई दो राय नहीं हो सकती कि गांधी जी की हत्या दुनिया को अवाक करने और देश को दहशत में डालने वाली थी।

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