कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों से लोहा लेते समय मेजर, कर्नल और राज्य पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर समेत पांच जवानों का बलिदान देश के लिए एक बड़ा आघात है। इस आघात को सहन करना ही होगा, लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान पोषित एवं प्रेरित आतंकवाद को समूल नष्ट करने का नए सिरे से दृढ़ संकल्प भी लेना होगा। यह संकल्प ऐसा होना चाहिए कि पाकिस्तान के होश ठिकाने आएं और वह अपने पाले-पोसे आतंकियों को भारत में घुसपैठ कराने से घबराए। उन कारणों की तह तक जाने की जरूरत है जिनके चलते सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद भी वह अपनी आतंकी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। उससे आतंकी राष्ट्र की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिए और यह उम्मीद लगाने से हर हाल में बचा जाना चाहिए कि एक न एक दिन वह सुधर जाएगा।

पाकिस्तानी का सत्ता प्रतिष्ठान कितना निर्लज्ज और निकृष्ट है, यह इससे समझा जा सकता है कि वह सबसे बड़ी वैश्विक आपदा के इस दौर में भी आतंकियों की घुसपैठ कराने और संघर्ष विराम का उल्लंघन करने में लगा हुआ है। हमें केवल यही नहीं सुनिश्चित करना कि राष्ट्र रक्षा में अप्रतिम शौर्य का परिचय देते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों का बलिदान व्यर्थ न जाए, बल्कि यह भी देखना होगा कि आखिर हंदवाड़ा में इतनी बड़ी क्षति क्यों उठानी पड़ी?

हंदवाड़ा में दो आतंकियों को मार गिराने में पांच योद्धाओं का बलिदान आतंक रोधी रणनीति में किसी खामी की ओर संकेत करता है। नि:संदेह आतंकियों को चुन-चुनकर मार गिराने में कोई कसर नहीं उठा रखी जानी चाहिए, लेकिन इसी के साथ इसके समुचित प्रबंध भी किए जाने चाहिए कि आतंकियों की घेराबंदी के समय सेना, अ‌र्द्धसैनिक बलों और पुलिस को कम से कम क्षति उठानी पड़े। चूंकि घरों में जा छिपे आतंकियों की घेराबंदी के समय कभी पत्थरबाजी शुरू हो जाती है और कभी आतंकवाद के अन्य हमदर्द आतंक रोधी अभियान में खलल डाल देते हैं इसलिए जोखिम और बढ़ जाता है। इस जोखिम को तभी कम किया जा सकता है जब सतर्कता के स्तर को बढ़ाया जाए और जवानों की जीवन रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।

कश्मीर में आतंक रोधी अभियानों में खुफिया एजेंसियों की भूमिका की नए सिरे से समीक्षा करने के साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या हमारे सुरक्षा बल आवश्यक आधुनिक तकनीक से लैस हैं और क्या वे खतरे को सही तरह भांपने के बाद ही अपनी कार्रवाई को अंजाम देते हैं? यह ठीक नहीं कि मरने पर आमादा आतंकियों को मार गिराने में मेजर और कर्नल स्तर के सैन्य अधिकारियों को अपना बलिदान देना पड़े।