केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कराए गए एक सर्वे के इस निष्कर्ष पर आश्चर्य नहीं कि सांसद आदर्श ग्राम योजना से अपेक्षित उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। इस महत्वाकांक्षी योजना के सही ढंग से आगे न बढ़ने के आसार तभी उभर आए थे जब यह सामने आया था कि संसद सदस्य गांवों को गोद लेने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। चूंकि खुद सत्तापक्ष के सांसदों और यहां तक कि केंद्रीय मंत्रियों ने भी इस योजना के तहत गांवों के विकास का बीड़ा नहीं उठाया इसलिए इसकी उम्मीद कम ही थी कि विपक्षी दलों के सांसद इसके प्रति दिलचस्पी दिखाएंगे। यह हर लिहाज से एक अच्छी योजना थी। प्रधानमंत्री ने सांसदों के जरिये गांवों की तस्वीर बदलने वाली इस योजना की घोषणा लालकिले की प्राचीर से की थी।

यदि लोकसभा और राज्यसभा के करीब आठ सौ सांसद हर साल एक गांव को गोद लेकर उसे विकसित करते तो आज आदर्श गांवों की संख्या हजारों में होती। ये गांव न केवल आत्मनिर्भर होते, बल्कि ग्रामीण विकास का आदर्श उदाहरण भी पेश कर रहे होते। चूंकि खुद ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कराया गया सर्वे सांसद आदर्श ग्राम योजना की नाकामी को बयान कर रहा है इसलिए संशय के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। गांवों की सूरत बदलने वाली एक उपयोगी योजना के ऐसे हश्र पर केवल अफसोस ही नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि हर स्तर पर ऐसे उपाय किए जाने चाहिए जिससे अन्य योजनाएं और खासकर ग्रामीण विकास से जुड़ी योजनाएं असफलता का मुंह न देखने पाएं।

सांसद आदर्श ग्राम योजना की नाकामी ‘पुरा’ नामक उस योजना की याद दिला रही है जिसकी रूपरेखा पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने बनाई थी और जिसका उद्देश्य 2020 तक गांवों को शहरों जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना था। ऐसा लगता है कि एक नहीं दो-दो अवसर गंवा दिए गए। कम से कम अब तो जरूरी सबक सीखने में देर नहीं की जानी चाहिए। ये सबक केंद्र और राज्य सरकारों के साथ सांसदों और साथ ही नौकरशाहों को भी सीखने होंगे।

सांसद आदर्श ग्राम योजना का सर्वे करने वाला आयोग भी यही कह रहा है। उसके अनुसार इस योजना के लिए पृथक फंड निर्धारित न किया जाना एक समस्या बना, लेकिन यह भी पाया गया कि जहां सांसदों ने अतिरिक्त सक्रियता दिखाई वहां गांवों के आधारभूत ढांचे में सुधार हुआ। इसका मतलब है कि यदि इस योजना की कमियां दूर की जा सकें तो देश के गांव आदर्श रूप ले सकते हैं। यह काम इसलिए प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए, क्योंकि कोरोना संकट के इस दौर में इसकी जरूरत और अधिक महसूस हो रही है कि हमारे गांव आत्मनिर्भर बनें।