परिवहन विभाग आजकल एक अच्छा काम कर रहा है। प्रदेश में इन दिनों सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है, जिसके तहत राहगीरों और मोटरचालकों को जागरूक किया जा रहा है। विभाग का जोर जागरूकता पर अधिक है। पिछले दिनों ऐसा कई बार हुआ जब ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले का चालान किया जा सकता था लेकिन, इसके बजाय उन्हें समझाया गया। परिवहन कर्मियों ने उन्हें बताया कि यातायात नियमों को तोड़कर वे अपना ही नुकसान कर रहे हैं। उनकी गाड़ी पर स्टीकर लगाकर उन्हें सचेत किया गया। कार चालकों को सीट बेल्ट बांधने के लाभ बताए गए और दुपहिया चालकों को हेल्मेट पहनने के। प्रदेशव्यापी इस अभियान का समापन रविवार को सभी जिलों में स्कूटर रैली से होगा। इस दौरान सड़क दुर्घटनाओं में मृत व्यक्तियों की स्मृति में कैंडिल जला उनके प्रति संवेदना व्यक्त की जाएगी। बेशक, यह अभियान प्रशंसनीय है, क्योंकि इसमें आम लोगों को साथ जोड़ने की पहल की गई है। जिन आम लोगों के लिए योजनाएं होती हैं, उनकी सक्रिय भागीदारी से ही कोई अभियान सिरे चढ़ेगा।

लेकिन, यह भी विचारणीय है कि क्या केवल इतने से ही सड़कें दुर्घटना मुक्त हो जाएंगी। सड़क हादसों का एक बड़ा कारण उनका संकरा हो जाना है। प्रदेश की अधिसंख्य सड़कें गलियां बन चुकी हैं। नगर निकायों का भ्रष्टाचार सड़कों पर स्कूल खुलवा चुका है, धर्मस्थल बनवा चुका है और फुटपाथों को व्यापारियों के हवाले कर चुका है। बहुत जगह तो फुटपाथ गायब हो चुके हैं। अदालतें आदेश पर आदेश दे रही हैं लेकिन, नगर निगम न उन्हें सुन रहा और न आवारा पशुओं और मंडियों को शहर से बाहर कर पा रहा। वाहन चलेंगे कहां? परिवहन विभाग कोई अभियान चला रहा है तो उसके साथ ट्रैफिक पुलिस और नगर निगम क्यों नहीं हैं। परिवहन विभाग के पास प्रवर्तन दस्ते लगभग नहीं। पुलिस की वर्दी जो काम कर सकती है वह क्यों नहीं हो पा रहा। केवल संपर्क मार्गो के लिए लाए गए ई-रिक्शे बेधड़क मुख्य मार्गो पर बसों और आटो के साथ रेस मिला रहे हैं लेकिन, दो वर्ष बीत गए फिर भी कोई सरकार उनका रूट तक तय नहीं कर सकी। राज्य सरकार यदि जनता को वास्तव में खुशी देना चाहती है तो सड़कों को अतिक्रमण व दुर्घटनामुक्त करा दे। इसके लिए इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]