इस पर हैरानी नहीं कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अयोध्या फैसले को नामंजूर करते हुए उसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया। इसके आसार तभी उभर आए थे जब अयोध्या विवाद पर उच्चतम न्यायालय का फैसले आने के बाद से ही कुछ मुस्लिम नेता अपने पुराने रवैये का परित्याग करते दिखने लगे थे। जो मुस्लिम नेता पहले यह कह रहे थे कि जो भी फैसला आएगा वह उन्हें स्वीकार होगा वे बाद में उसे अस्वीकार करने के लिए तरह-तरह के बहाने गढ़ने लगे। 

किसी को फैसला आस्था के आधार पर होते हुए दिखा तो किसी ने उसमें विरोधाभास खोजना शुरू कर दिया। शायद यह माहौल इसीलिए बनाया गया ताकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को अयोध्या फैसला अस्वीकार करने के लिए आसानी से तैयार किया जा सके।

नि:संदेह किसी भी मामले में पुनर्विचार याचिका दायर किया जाना एक अधिकार है। यदि अयोध्या मामले के पक्षकार इस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इसमें हर्ज नहीं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एक तो प्रमुख पक्षकार इकबाल अंसारी फैसले को चुनौती देने की जरूरत नहीं समझ रहे और दूसरे, जो लोग उनसे अलग रास्ता पकड़ रहे हैं वे यह भली-भांति जान रहे हैं कि अब कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

इसकी एक बड़ी वजह यही है कि अयोध्या मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपना फैसला सर्वसम्मति से सुनाया। आखिर यह जानते हुए भी अयोध्या फैसले को चुनौती देने का क्या मतलब कि इससे कुछ हाथ लगने वाला नहीं है? यह केवल समय की बर्बादी ही नहीं, बल्कि कलह के रास्ते पर जानबूझकर चलने की कोशिश भी है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक बार फिर हठधर्मी दिखाने पर तुल गया है, इसका पता उसके नेताओं के इस बयान से चलता है कि शरई कानून के मुताबिक मस्जिद की जमीन किसी और को नहीं दी जा सकती। वे अयोध्या में पांच एकड़ जमीन लेने से भी इन्कार कर रहे हैं।

उनका तर्क है कि अयोध्या में तो पहले से ही 27 मस्जिदें हैं। क्या इसका यह मतलब नहीं कि वे बाबर के नाम पर बनाई गई मस्जिद को हासिल करने की ललक दिखा रहे हैं?

अगर ऐसा नहीं है तो फिर उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर हिंदू ढांचे पर बनी बाबरी मस्जिद इन 27 मस्जिदों से अलग और विशिष्ट कैसे थी? ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपनी जिद पूरी करने या फिर खुद को पीड़ित दिखाने के लिए अपने कानूनी अधिकार का इस्तेमाल करने को स्वतंत्र है, लेकिन वह याद रखे तो बेहतर कि भारतीय मुस्लिम समाज को आक्रमणकारी बाबर से जोड़ना उसका अपमान करना है।