हरियाणा शिक्षक पात्रता परीक्षा के परिणाम ने एक बार फिर हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा कर दिया है। शिक्षक बनने की चाहत रखने वाले चार लाख से अधिक लोगों ने पात्रता परीक्षा दी थी और जब परिणाम आया तो पैरों तले जमीन खिसक गई। स्नातकोत्तर दावेदारों में से 99 फीसद से अधिक अभ्यर्थी फेल हो गए। लेवल एक व दो में भी परिणाम बुरा रहा। स्नातक व स्नातकोत्तर उत्तीर्ण अभ्यर्थी पात्रता परीक्षा में 50 फीसद अंक नहीं ले पाए। ये अभ्यर्थी सीधे शिक्षण क्षेत्र में आ जाते तो किस तरह की शिक्षा देते? शिक्षक पात्रता परीक्षा शुरू होने के बाद परीक्षा परिणाम 10-12 फीसद से अधिक नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यह प्रश्न बार-बार उठता है कि हमारे कालेजों व विश्वविद्यालयों में शिक्षा का स्तर कैसा है? यूनिवर्सिटी कैंपस के बड़े कालेजों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर कालेजों में वार्षिक परीक्षा परिणाम 10 से 20 फीसद तक ही जा पाता है।

स्कूलों में छात्रों के मूल्यांकन के दौरान यह सामने आया था कि नौवीं व 10वीं कक्षा के छात्र छोटे-छोटे गणित के प्रश्न भी हल नहीं कर पाए। अंग्रेजी की स्थिति तो और बदतर थी। कारण स्पष्ट है कि अब तक हमारी शिक्षा व परीक्षा पद्धति में केवल बेहतर अंक पाने वालों को ही आगे रखते है। स्वयं सीखने की प्रवृत्ति विकसित करने पर किसी का ध्यान नहीं है। यही वजह है कि स्नातक में बेहतर अंक ले पाने वाले भी प्रतियोगी परीक्षाओं में फिसड्डी हो जाते हैं। उनकी तार्किक क्षमता का विकास नहीं हो पाता।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]