प्रदेश का इकलौता शहर लुधियाना कुछ माह पहले स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल किया गया है। इस शहर में सीवरेज की सफाई के दौरान शुक्रवार को दो कर्मियों की मौत स्मार्ट सिटी पर धब्बे से कम नहीं है। इस घटना से पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा होता है। इक्कीसवीं सदी में भी दशकों पुरानी व्यवस्था आखिर क्यों चल रही है? आखिर सीवरेज की सफाई के लिए किसी भी कर्मी को अंदर क्यों उतारना पड़ता है? यह और भी हैरानीजनक है कि लुधियाना सहित प्रदेश के कई जिलों में इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। बार-बार हो रही घटनाओं के बावजूद प्रशासन सबक लेने को तैयार नहीं है। घटना के बाद मुआवजे व परिजनों को नौकरी देने की घोषणा कर दी जाती है, लेकिन बाद में सब कुछ वैसे ही चलता रहता है। ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की जाती है कि सीवरमैन या अन्य किसी को सीवर में उतरना ही न पड़े। इससे पहले जालंधर में सीवरेज सफाई के दौरान पांच, फरीदकोट में तीन, मुक्तसर, अमृतसर, बरनाला व पटियाला में दो-दो, तरनतारन व बठिंडा में एक-एक मौत हो चुकी है। साल दर साल हो रही घटनाओं और इतने लोगों की मौत के बावजूद आधुनिक तरीके से सीवरेज सफाई करने की व्यवस्था न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। पंजाब तो देश के धनी राज्यों में शुमार है। निश्चित रूप से देश के कई राज्यों के मुकाबले यहां पर आधारभूत ढांचा बेहतर है। प्रदेश सरकार को इस तरह की दुखद घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए। एक प्रदेश में कम से कम 18 लोगों की मौत सीवरेज सफाई के दौरान हो जाने की वजह लापरवाही ही मानी जाएगी। इस तरह की घटनाओं पर अधिकारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। ज्यादातर मामलों में ऐसा देखने में आया है कि बिना सुरक्षा किट के ही सीवरमैन उतरते हैं। यह जानते हुए भी कि गैस उन्हें चढ़ सकती है, उनकी जान जा सकती है तो उन्हें उतारा ही क्यों जाता है? कई नगर निगमों व नगर कौंसिलों में सुरक्षा किट है ही नहीं। यदि प्रदेश सरकार लगातार होने वाले हादसों को गंभीरता से लेती और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करती तो इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति नहीं होती। प्रदेश सरकार को इस तरह के हादसे रोकने के लिए हर वह कदम तत्काल उठाने चाहिए जो जरूरी हों। नगर निगमों व नगर कौंसिलों में जरूरी मशीनरी, किट इत्यादि की व्यवस्था अविलंब की जानी चाहिए। जिन नगर निगमों व नगर कौंसिलों में इसके लिए फंड की कमी सामने आती है उसे दूर करना सरकार का काम है। सिर्फ स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल हो जाना पर्याप्त नहीं है, व्यवस्था सुधरे तब बात बनेगी।

(स्थानीय संपादकीय: पंजाब)