राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से यह कहा जाना कोई नई बात नहीं कि समाज में जब तक आर्थिक असमानता है तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए। संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की ओर से यह बात शायद इसलिए कही गई, क्योंकि चंद दिनों पहले मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की जरूरत जताई थी। वह पहले भी कई बार आरक्षण की समीक्षा की जरूरत जता चुके हैैं, लेकिन वह जब भी ऐसा करते हैैं तब कई दल और सामाजिक संगठन यह शोर मचाने लगते हैं कि संघ आरक्षण को खत्म करना चाहता है। यही नहीं, संघ के साथ ही भाजपा को भी आरक्षण विरोधी करार देने की कोशिश होने लगती है।

जब ऐसा होता है तो भाजपा भी रक्षात्मक मुद्रा में आ जाती है और इसी के साथ आरक्षण की समीक्षा का सवाल पीछे छूट जाता है। ऐसा शायद इसलिए भी होता है, क्योंकि आरक्षण वोट बैैंक की राजनीति का हथियार बन गया है। आखिर जब अन्य संवैधानिक प्रावधानों की समय-समय पर समीक्षा हो सकती है और जरूरत पड़ने पर उनमें संशोधन हो सकता है तो फिर आरक्षण के संदर्भ में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? समझना कठिन है कि इसमें क्या हर्ज है कि एससी-एसटी आरक्षण के साथ अन्य पिछड़े वर्गों को मिल रहे आरक्षण की समीक्षा इस उद्देश्य से की जाए कि वह और अधिक प्रभावी एवं उपयोगी कैसे हो सके?

क्या आज यह नहीं देखा जाना चाहिए कि जो वर्ग आरक्षण के दायरे में हैैं वे उससे उचित रूप से लाभान्वित हो सके हैैं या नहीं? नि:संदेह यह भी देखे जाने की जरूरत है कि केवल पात्र लोगों को ही आरक्षण कैसे मिले? यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि आरक्षण का लाभ उठा चुके लोगों के परिजन भी उसका फायदा उठाने में लगे हुए हैैं। क्रीमी लेयर की व्यवस्था ने इसे और आसान बना दिया है, लेकिन शायद ही कोई दल हो जो क्रीमी लेयर को तार्किक बनाने की वकालत करता हो। बेहतर होगा कि आरक्षण की समीक्षा के तौर-तरीकों पर बहस शुरू हो।

आरक्षण शोषित-वंचित तबकों और पिछड़े वर्गों को सामाजिक तौर पर आगे लाने वाली व्यवस्था है, लेकिन बीते कुछ सालों में यह धारणा बन गई है कि यह सरकारी नौकरी पाने का जरिया है। दत्तात्रेय होसबले ने आरक्षण की समीक्षा के सवाल पर यह सही कहा कि यह निर्णय लेना इससे जुड़े लोगों और नीति-निर्धारकों का काम है, लेकिन इसमें संदेह है कि हमारा राजनीतिक वर्ग इसके लिए सहमत हो पाएगा। इसके बावजूद उससे यह तो अपेक्षित है ही कि वह निर्धनता निवारण के उपायों पर ज्यादा जोर दे, क्योंकि तमाम तरक्की के बावजूद भारत में गरीबों की अच्छी-खासी संख्या है।