उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा वैकल्पिक ऊर्जा दायित्व पूरा करने में ऐसी लापरवाही की गई, जिससे गांवों को रोशन करने और बिजली सिस्टम मजबूत करने में अड़चन आए।

उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) के पास संसाधन सीमित हैं। अपने स्तर से किसी गांव में बिजली पहुंचाना तो दूर, सिस्टम को मजबूत करने का भी बूता कॉरपोरेशन के पास नहीं है लेकिन फिर भी वैकल्पिक ऊर्जा दायित्व पूरा करने में ऐसी लापरवाही की गई, जिससे गांवों को रोशन करने और बिजली सिस्टम मजबूत करने में अड़चन आए। यूपीसीएल की कार्यप्रणाली कुछ ऐसी है। कुछ दिन पहले ही केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल की अध्यक्षता में फोरम ऑफ रेगूलेटर की बैठक हुई थी, जिसमें सभी राज्यों के विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्षों ने हिस्सा लिया था। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने कहा था कि अगर कोई बिजली वितरण कंपनी आरपीओ को पालन सुनिश्चित नहीं करेगी तो केंद्रीय योजनाओं के तहत मिलने वाली ग्रांट में कटौती की जाएगी। हर वर्ष का लक्ष्य उसी साल पूरा करना सुनिश्चित किया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि पर्यावरण को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए विश्वभर का फोकस ग्रीन एनर्जी पर है। उत्तराखंड में इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम (आइपीडीएस), दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, पुनर्गठित त्वरित विद्युत विकास योजना (आरएपीडीआरपी) चल रही हैं, जिसमें बिजली सुधार और ग्रामीण विद्युतीकरण के कार्य होने हैं। यूपीसीएल अपना वैकल्पिक ऊर्जा दायित्व (आरपीओ) कई सालों से पूरा नहीं कर रहा, जबकि केंद्र सरकार ने कुल बिजली खपत का कुछ फीसद वैकल्पिक ऊर्जा से लेना निर्धारित किया हुआ है। इसमें पनबिजली परियोजना, बगास, गोबर गैस आदि से उत्पादित बिजली आती है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग पूर्व में एमडी समेत पांच अधिकारियों पर व्यक्तिगत जुर्माना भी लगा चुका है। इसी कड़ी में कुछ दिन पहले भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। दरअसल, इस लापरवाही से ग्रांट पर संकट तो है ही साथ ही उपभोक्ताओं पर भी इसका भार पड़ता है, क्योंकि निर्धारित वैकल्पिक ऊर्जा नहीं लेने पर रिन्यूएबल एनर्जी सर्टिफिकेट खरीदने पड़ते हैं। हाल ही में यूईआरसी ने बिजली फीसद में बढ़ोतरी की, जिसका एक कारण आरपीओ पूरा नहीं करना भी है। सरकार को भी सोचने की जरूरत है कि कैसे यूपीसीएल की कार्यप्रणाली में सुधार किया जाए। यूपीसीएल यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकता कि प्रदेश में पर्याप्त वैकल्पिक ऊर्जा नहीं है या ये महंगी पड़ती है, क्योंकि सवाल ग्रांट का नहीं रोशनी का है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]