यह अच्छी बात है कि राज्य सरकार लाल इमली का पुनरुद्धार करना चाहती है और इसके लिए केंद्र सरकार से भी सहयोग लेने के लिए प्रयासरत है। इसके निहितार्थ बहुत व्यापक हैं। यदि आपकी उम्र पचास वर्ष या उससे अधिक है तो बहुत संभव है आपने कभी लाल इमली का सूट या ब्लेजर पहना हो। यदि पहना है तो फिर इसी कंपनी का कंबल भी शर्तिया ओढ़ा होगा। एक कंबल आजकल की दो जयपुरी रजाइयों के बराबर होता। लाल इमली के स्वेटर घर घर पहने जाते और यूं भी कहा जा सकता है कि अपने समय में स्टेटस सिंबल होते। ऊनी कपड़ों की गरमाहट का मुहावरा थी लाल इमली। कानपुर की यह कंपनी देश में अपने शहर और प्रदेश का नाम रौशन कर रही थी। फिर इसे अकर्मण्यता व भ्रष्टाचार का घुन लग गया। यहां के पावर जनरेशन प्लांट से अधिकारियों के घरों में बिजली की सप्लाई की जाती थी। उत्तर प्रदेश का औद्योगिक परिदृश्य कानपुर की सार्थक चिंता किये बिना नहीं सुधारा जा सकता। फिर चाहे वहां की होजरी हो या चमड़े का काम।

यदि यह मिल दोबारा शुरू करने में राज्य सरकार सफल हो जाती है तो न केवल पांच हजार से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और बीस हजार से अधिक को परोक्ष रोजगार मिलेगा बल्कि देश भर में उत्तर प्रदेश के प्रति बहुत सकारात्मक संदेश जाएगा। इससे होजरी और वूलन संबंधी सहायक उद्योग बढ़ेंगे और कानपुर को टेक्सटाइल क्लस्टर बनाने में बड़ी मदद मिलेगी। दो महीने पहले हुई इन्वेस्टर्स समिट की सफलता का एक मानक लाल इमली का चालू हो जाना भी माना जाएगा। अंग्रेजी सेना के कंबल बनाने के लिए 1876 में कानपोर वूलन मिल्स नाम की इस कंपनी को जार्ज ऐलन, वीई कूपर, गेविन जोंस और विवेन पेटमैन ने स्थापित किया था। लाल इमली नाम पड़ने के पीछे एक रोचक कारण यह बताया जाता है कि यहां लाल इमली के बहुत पेड़ लगे थे। वर्ष 1911 में मिल में आग लगने के बाद इसका दोबारा निर्माण हुआ था। 1920 में निदेशक मंडल बना और ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन (बीआइसी) के तहत मिल चलने लगी। 11 जून 1981 को राष्ट्रीयकरण के तहत मिल भारत सरकार के अधीन हो गई।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]