बंगाल में निवेश को लेकर लेकर पिछले छह वर्षों से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार प्रयास कर रही हैं। सीएम ने बड़े निवेश की तलाश में कई देशों का भी दौरा किया। बंगाल में भी उद्योगपतियों का सम्मेलन आयोजित करती आ रही हैं। परंतु, अब तक अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। अब भी बंगाल में उद्योग के हालात पर चर्चा होती है तो बड़े उद्योग नहीं लग पाने को लेकर आलोचना शुरू हो जाती है। क्योंकि, टाटा मोटर्स को नैनो परियोजना समेट कर बंगाल से जाना पड़ा था। पर, अब ममता सरकार निवेशकों के लिए रेड कार्पेट बिछा रही हैं। उद्योग के लिए पहली आवश्यकता जमीन है। अब सरकार का कहना है कि बड़े उद्योग के लिए प्रस्ताव मिलने पर 60 दिनों के भीतर जमीन दे दी जाएगी और 15 दिनों में इंसेंटिव भी मिलेगी। सिर्फ यह राज्य सरकार का मौखिक आश्वासन नहीं होगा। इसके लिए कानून भी बनाने की तैयारी है। क्योंकि, सरकार का मानना है कि यदि कोई उद्योगपति समयानुसार सुविधाएं प्राप्त नहीं करते हैं तो इसे लेकर वे सरकार के खिलाफ भी कदम उठा सकते हैं। यही नहीं कानून के तहत जो भी अधिकारी दोषी होंगे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यानी ममता सरकार पूरी तरह से लालफीताशाही खत्म कर उद्योगपतियों के लिए लाल कालीन बिछाने की तैयारी कर रही हैं। इन कदमों से स्पष्ट होता है कि निवेशकों को आकर्षित करने के लिए ममता सरकार कितनी गंभीर है। यही नहीं कहीं न कहीं इससे यह भी प्रमाणित होता है कि पिछले छह वर्षों में औद्योगिकीकरण की गाड़ी बंगाल में पटरी पर नहीं आ सकी है। परंतु, सबसे बड़ा सवाल यह है कि बंगाल में निवेशकों के लिए सबसे बड़ी परेशानी सिंडिकेट (भवन सामग्र्री आपूर्ति करने का धंधा) बना हुआ है। क्योंकि, सिंडिकेट से जुड़े लोग सत्तारूढ़ दल के हैं और उन्हें मोटी रकम दिए बिना काम नहीं होता है। ऐसे में सरकार को सिंडिकेट के धंधे पर पूरी तरह से लगाम कसना होगा। हालांकि, मुख्यमंत्री बार-बार कहती रही हैं कि यदि कहीं कोई परेशानी होती है तो उनसे सीधे शिकायत करें। परंतु, सवाल यह भी है कि जब सिंडिकेट से जुड़े लोग तृणमूल के सांसद तक को नहीं बख्श रहे हैं तो अन्य लोगों क्या करेंगे? सरकार को तत्काल चाहिए कि सबसे पहले निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करें। इसके बाद सिंडिकेट के धंधे पर पूरी तरह से अंकुश लगाए। तभी जाकर कुछ सफलता मिल सकती है।
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हाईलाइटर:: इन कदमों से स्पष्ट होता है कि निवेशकों को आकर्षित करने के लिए ममता सरकार कितनी गंभीर है। यही नहीं कहीं न कहीं इससे यह भी प्रमाणित होता है कि पिछले छह वर्षों में औद्योगिकीकरण की गाड़ी बंगाल में पटरी पर नहीं आ सकी है।

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]