वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा उत्पादन का कुल मूल्य एक लाख करोड़ रुपये के आंकड़े से अधिक रहना एक उपलब्धि है। विशेष बात यह है कि निजी क्षेत्र की कुछ रक्षा इकाइयों से आंकड़ा मिलने के बाद इस मूल्य में बढ़ोतरी होने का अनुमान है। चूंकि यह पहली बार है, जब देश का रक्षा उत्पादन एक लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचा, इसलिए यह एक मील का पत्थर है। यद्यपि यह पिछले वित्त वर्ष में ही स्पष्ट हो गया था कि एक लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को छू लिया जाएगा, फिर भी ताजा आंकड़ा रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होने की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है।

इसका श्रेय सरकार की ओर से उठाए गए प्रोत्साहन के उपायों को तो जाता ही है, उस पहल को भी जाता है, जिसके तहत निजी क्षेत्र को रक्षा सामग्री के उत्पादन में भागीदार बनाया गया। इसे इससे समझा जा सकता है कि पिछले सात-आठ वर्षों में उद्योगों को दिए गए रक्षा लाइसेंस में दो सौ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

यदि देश को रक्षा उत्पादन के मामले में सचमुच आत्मनिर्भर बनना है तो इस सिलसिले को कायम रखते हुए निजी क्षेत्र को और अधिक प्रोत्साहन देना होगा तथा एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा करनी होगी। इस प्रतिस्पर्धा के कैसे नतीजे मिल सकते हैं, यह इससे साफ होता है कि वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा निर्यात 16,000 करोड़ रुपये तक पहुंचा। भारत इस समय 85 से ज्यादा देशों को रक्षा सामग्री का निर्यात कर रहा है।

यह स्वागतयोग्य है कि रक्षा उत्पादन क्षेत्र में कारोबारी सुगमता को बढ़ाने के साथ एमएसएमई एवं स्टार्टअप की भागीदारी के जरिये रक्षा उत्पादों के स्वदेशी डिजाइन, विकास एवं विनिर्माण को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है। इस पर आश्चर्य नहीं कि वित्त वर्ष 2024-25 तक 25 अरब डालर यानी 1.75 लाख करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसमें 35,000 करोड़ रुपये के सैन्य उत्पादों का निर्यात करने का लक्ष्य भी शामिल है। यह ध्यान रहे कि रक्षा सामग्री के देश में ही उत्पादन के बाद भी भारत सैन्य उत्पादों का बड़ा आयातक है।

एक अनुमान के अनुसार अगले पांच वर्षों में भारतीय सैन्य बलों को 130 अरब डालर मूल्य के रक्षा उपकरण खरीदने हैं। चूंकि यह एक बड़ी राशि है, इसलिए स्वदेश में रक्षा उत्पादन के अभियान को और गति देनी होगी और ऐसा कोई लक्ष्य तय करना होगा, जिससे रक्षा सामग्री के आयात में अच्छी-खासी कमी की जा सके। यह सही है कि भारत तमाम प्रयासों के बाद भी हाल-फिलहाल अपनी आवश्यकता की हर सामग्री का उत्पादन नहीं कर सकता, लेकिन सरकार के नीति-नियंताओं को यह तो देखना ही होगा कि वे हथियार और रक्षा उपकरण देश में कैसे निर्मित हों, जिन्हें आसानी से बनाया जा सकता है। सरकार का उद्देश्य रक्षा सामग्री के आयातक के बजाय निर्यातक बनने का होना चाहिए।