जम्मू संभाग के रियासी जिले में एक धार्मिक स्थल से लौट रही श्रद्धालुओं से भरी बस को आतंकियों ने जिस तरह निशाना बनाया, उससे यह स्पष्ट है कि उन्होंने इस हमले के लिए खास तौर पर वह दिन चुना, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल की शपथ लेने जा रहे थे। इस हमले का उद्देश्य केवल निर्दोष-निहत्थे हिंदू श्रद्धालुओं पर कायरतापूर्वक हमला करना ही नहीं, बल्कि कहीं न कहीं मोदी सरकार को चुनौती देने का भी था, लेकिन यदि आतंकी अथवा उनके आका यह सोच रहे हैं कि इस तरह के हमलों से वे मोदी सरकार को झुकाने में समर्थ हो जाएंगे तो यह उनकी भूल ही है।

ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है। उलटे इस हमले के बाद तो मोदी सरकार आतंकियों के दुस्साहस का दमन करने के लिए और प्रतिबद्ध ही होगी। उसे ऐसा होना भी चाहिए। उसे केवल आतंकियों के समूल नाश का ही अभियान नहीं चलाना चाहिए, बल्कि उन्हें सहयोग-समर्थन देने वाले तत्वों को भी निशाने पर लेना चाहिए-भले ही वे सीमा के अंदर हों अथवा सीमा पार यानी पाकिस्तान में।

रियासी में आतंकी हमले ने एक बार फिर यह रेखांकित किया कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं है। हैरानी नहीं कि वह इससे बौखलाया हो कि हाल में हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में लोगों ने मतदान में भाग लेकर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने की अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से प्रकट की।

पाकिस्तान और उसकी शह पाने वाले आतंकी संगठन इससे भी बौखलाए हो सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर में आतंक की कमर तोड़ने, विभाजनकारी अनुच्छेद-370 को समाप्त करने और पाकिस्तान को कोई भाव न देने वाली मोदी सरकार फिर से सत्ता में आ गई। साफ है कि मोदी सरकार को जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकियों और उनके समर्थकों के साथ सीमा पार से उन्हें सहयोग देने वालों पर भी अपनी नजरें टेढ़ी करनी होंगी।

इस क्रम में उसे यह भी देखना होगा कि आखिर क्या कारण है कि कश्मीर के साथ-साथ जम्मू संभाग में भी आतंकी गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं? आतंकी अब पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं को भी निशाना बना रहे हैं। जम्मू के विभिन्न इलाकों में आतंकी एक लंबे समय से अपनी गतिविधियों को अंजाम देने में लगे हुए हैं। जब उनकी गतिविधियों को देखते हुए अतिरिक्त सतर्कता का परिचय देना चाहिए था, तब यह देखा ही जाना चाहिए कि ऐसा क्यों नहीं हुआ?

कहीं खुफिया एवं सुरक्षा एजेंसियों से कोई चूक तो नहीं हुई? अब जब लोकसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि आतंकियों और उन्हें पनाह देने वाले तत्वों के खिलाफ कठोरता से कार्रवाई की जाए। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों और उनसे सहानुभूति रखने वालों को सिर उठाने का कोई मौका नहीं दिया जाना चाहिए।