चिकित्सकों को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है क्योंकि ये हर तरफ से निराश व्यक्ति में आशा का संचार करते हैं और उसे नई जिंदगी देते हैं। यही कारण है कि समाज में चिकित्सा के पेशे को सबसे ज्यादा सम्मान प्राप्त है। चिंता तब होती है जब भगवान का रूप माने जाने वाले ये चिकित्सक किसी के जीवन से खिलवाड़ करने लगें। फर्जी चोट और असली सजा का मामला भी कुछ ऐसा ही है। चिकित्सकों की रिपोर्ट के आधार पर ही अदालत तय करती है कि दोषी व्यक्ति को क्या सजा दी जाए? अगर यह रिपोर्ट ही गलत हो, बगैर चोट के भी जख्म दिखा दिया जाए और अदालत सजा भी दे दे तो बेकसूर आदमी क्या करे? हिसार नागरिक अस्पताल के पूर्व मेडिकल ऑफिसर डॉ. भूप सिंह खत्री की यह करतूत भी सामने नहीं आ पाती, अगर पीडि़त व्यक्ति का पक्ष सतर्क नहीं होता। कानूनी जानकारी होने के कारण ही दूसरे पक्ष ने वे सारे तथ्य एकत्र किए जो उसे निर्दोष साबित करने के लिए जरूरी थे। चिकित्सक की गतिविधियों को कैमरे में कैद किया गया तो पूरा काला कारनामा उजागर हो गया। पता चला कि कैसे इस गोरखधंधे में पूरा गिरोह सक्रिय था। छह साल की लंबी अदालती कार्यवाही, गवाहियां और पक्ष-विपक्ष की बहस के बाद जज ने पूर्व चिकित्सा अधिकारी व एक अन्य को इस मामले में दोषी ठहराया है।

इन्हें क्या सजा सुनाई जाती है, इसका पता को कुछ दिन बाद पता चलेगा, लेकिन इनका दोषी साबित होना ही कम महत्वपूर्ण नहीं है। यह तो उदाहरण मात्र है। कुछ चिकित्सकों के काले कारनामे पूरे पेशे की छवि पर बुरा असर डाल रहे हैं। कहीं आपरेशन के बाद शरीर में ही औजार छोड़ दिया जाता है तो कहीं चंद रुपयों की खातिर भ्रूण जांच और गर्भपात जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ज्यादातर चिकित्सक ईमानदारी से अपने काम में जुटे हुए हैं। उनके लिए धन नहीं मरीज का उपचार ज्यादा अहमियत रखता है, लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिनकी वजह से पूरा पेशे पर दाग लग रहा है। यह अनुमान लगाना भी मुश्किल है कि नकली चोट के कारनामों की वजह से कितने बेकसूर लोगों को सजा हुई होगी और रंजिश निकालने के लिए लोगों ने अपने हित साधे होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि डॉक्टर भूप सिंह को मिलने वाली सजा से लोग सबक लेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]