निशाने पर रामनवमी, शोभा यात्राओं पर सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हो रहे हमले
अगर यह कहा जाएगा कि हिंदू समुदाय मुस्लिम इलाकों से शोभा यात्राएं न निकालें तो फिर कोई यह भी कहेगा कि मुसलमानों को अपने जुलूस हिंदुओं के इलाकों से नहीं निकालने चाहिए। क्या मुस्लिम इलाके ऐसे विशेष स्थल हैं जहां अन्य किसी समुदाय के लोगों को नहीं जाना चाहिए?
रामनवमी पर देश के कुछ हिस्सों में जिस तरह उपद्रव हुआ और शोभा यात्राओं को निशाना बनाया गया, उससे पिछले वर्ष की उन घटनाओं का स्मरण हो आया, जब इसी पर्व के दौरान कई शहरों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि रामनवमी पर निकाली जाने वाली शोभा यात्राओं पर किसी सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हमले हो रहे हैं। इसका प्रमाण महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर, गुजरात के वडोदरा और पश्चिम बंगाल के हावड़ा में हुई हिंसा से मिलता है।
संभाजी नगर में एक राम मंदिर के पास जमकर हिंसा की गई और जब पुलिस मौके पर पहुंची तो उपद्रवियों ने उसे भी निशाना बनाया। इसके चलते कई पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। वडोदरा में रामनवमी की दो शोभा यात्राओं पर हमले किए गए। हावड़ा में तो अति ही हो गई। यहां शोभा यात्रा पर हमले के साथ हिंदुओं के घरों और दुकानों को भी निशाना बनाया गया। इससे भी चिंताजनक बात यह हुई कि यहां दूसरे दिन भी हिंसा जारी रही। हावड़ा में शुक्रवार की नमाज के बाद हिंसक भीड़ ने जैसा उत्पात मचाया, उससे साफ है कि उसका दुस्साहस बढ़ा हुआ था और उसे पुलिस की चौकसी से कोई मतलब नहीं था।
हैरानी नहीं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस कथन ने उपद्रवी तत्वों का दुस्साहस बढ़ाने का काम किया हो कि मुस्लिम इलाकों से रामनवमी की शोभा यात्राएं न निकाली जाएं। आखिर इस तरह का बयान देने की क्या आवश्यकता थी? क्या शोभा यात्राओं के लिए मुस्लिम इलाके निषेध हैं? यदि किसी की ओर से यह कहा जाएगा कि हिंदू समुदाय मुस्लिम इलाकों से शोभा यात्राएं न निकालें तो फिर कोई यह भी कहेगा कि मुसलमानों को अपने जुलूस हिंदुओं के इलाकों से नहीं निकालने चाहिए। क्या ममता बनर्जी यही चाहती हैं? क्या मुस्लिम इलाके ऐसे विशेष स्थल हैं, जहां अन्य किसी समुदाय के लोगों को नहीं जाना चाहिए? यह सवाल केवल ममता बनर्जी से ही नहीं, उनसे भी है, जो गंगा-जमुनी तहजीब की दुहाई दिया करते हैं।
या तो यह तथाकथित तहजीब एक धोखा है या फिर उसमें मुस्लिम समुदाय के अतिरिक्त अन्य किसी के लिए कोई स्थान नहीं। इस तहजीब का बखान करने वालों को यह भी बताना होगा कि आखिर शोभा यात्राओं पर ही हमले क्यों होते हैं? जब हावड़ा में शोभा यात्रा पुलिस की ओर से तय किए गए मार्ग से निकल रही थी, तब फिर उस पर कोई आपत्ति कैसे जता सकता है? इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि कोई शोभा यात्रा पर हमले की जुर्रत कैसे कर सकता है? आम तौर पर ऐसी जुर्रत तभी की जाती है, जब पुलिस का कोई खौफ नहीं रह जाता। शोभा यात्राओं पर होने वाले हमले केवल कानून-व्यवस्था को ही सीधी चुनौती नहीं हैं, बल्कि देश के सामाजिक ताने-बाने को ध्वस्त करने की कुचेष्टा भी हैं।