अशोक गहलोत समर्थक विधायकों की बगावत ने केवल कांग्रेस नेतृत्व और विशेष रूप से गांधी परिवार की फजीहत ही नहीं कराई, बल्कि यह प्रश्न भी खड़ा कर दिया कि क्या राजस्थान भी पंजाब के रास्ते पर जाने वाला है? इससे विचित्र और कुछ नहीं कि जो अशोक गहलोत गांधी परिवार के सबसे विश्वासपात्र कहे-बताए जा रहे थे, उन्होंने ही उसकी इच्छा के खिलाफ काम कर उसे नीचा दिखाया। हैरानी नहीं कि इसके बाद उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनना मुश्किल हो जाए, क्योंकि यह पहली बार है, जब गांधी परिवार की चाहत के खिलाफ किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने ऐसी खुली बगावत की।

यह राजस्थान गए कांग्रेस के पर्यवेक्षकों के इस कथन से स्पष्ट भी होता है कि गहलोत समर्थक विधायकों की ओर से समानांतर बैठक करना अनुशासनहीनता है। ज्ञात हो कि इसी बैठक में गहलोत समर्थक विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को अपने इस्तीफे सौंपे। यह संभव नहीं कि यह पहल अशोक गहलोत की इच्छा के विपरीत हुई हो। इसमें संदेह है कि कांग्रेस नेतृत्व इस अनुशासनहीनता के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई कर सकेगा, क्योंकि इससे राजस्थान कांग्रेस में बिखराव की प्रक्रिया और तेज हो सकती है।

फिलहाल कहना कठिन है कि बदले हालात में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही बने रहेंगे या फिर उनकी पसंद का कोई नेता बनेगा, लेकिन इतना तो है ही कि सचिन पायलट का साथ देने वाले विधायकों की संख्या कहीं कम है। उनके पास उतने विधायक भी नहीं दिख रहे, जितने तब दिख रहे थे, जब उन्होंने उपमुख्यमंत्री के तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ विद्रोही तेवर दिखाए थे। चूंकि उनके समर्थक विधायकों की संख्या ही पर्याप्त नहीं, इसलिए गांधी परिवार के चाहने पर भी उनका मुख्यमंत्री बनना कठिन है।

अशोक गहलोत के तेवरों ने सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने के सपने पर पानी फेरने के साथ गांधी परिवार की भी परेशानी बढ़ा दी है। अब वह उन्हें पार्टी के भावी अध्यक्ष के रूप में शायद ही स्वीकार करना चाहेगा। अशोक गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों से जो कराया, उससे यही पता चलता है कि वह या तो अपनी पसंद का उत्तराधिकारी चाह रहे थे या फिर मुख्यमंत्री पद छोड़ना ही नहीं चाहते थे। शायद इसलिए और भी, क्योंकि वह यह अच्छी तरह जान-समझ रहे थे कि उन्हें अध्यक्ष के रूप में वही करना होगा, जो गांधी परिवार चाहेगा।

उन्होंने इस बात को और अच्छे से उजागर कर दिया कि गांधी परिवार एक कठपुतली अध्यक्ष चाहता था। कांग्रेस नेतृत्व आगे जो भी फैसला ले, राजस्थान की खींचतान ने एक ऐसे समय उसकी किरकिरी कराई, जब वह इस पर जोर देने में लगा है कि भारत जोड़ो यात्रा चर्चा के केंद्रबिंदु में रहे। इसके पहले उसकी ऐसी ही किरकिरी तब हुई थी, जब इस यात्रा के बीच ही गोवा में आठ कांग्रेसी विधायक पाला बदलकर भाजपा में जा मिले थे।