प्रधानमंत्री ने किसान सम्मान निधि की आठवीं किस्त जारी करते हुए किसानों को कोरोना से जागरूक करने का जो काम किया, उसे बार-बार करने की जरूरत है- भले ही कोई अदालत मोबाइल फोन की कॉलर ट्यून पर आपत्ति क्यों न जताए। ऐसी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों और उनके जिला प्रशासन को गांव वालों को लगातार यह बताना होगा कि वे कोरोना संक्रमण से बचने के लिए क्या करें? उन्हेंं यह भी बताना होगा कि यदि संक्रमित हो जाएं तो फिर क्या सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि यह एक हकीकत है कि कोरोना गांवों में भी फैल गया है और कहीं-कहीं वह ग्रामीणों की जान भी ले रहा है। बेहतर हो कि स्थानीय प्रशासन के साथ खुद ग्रामीण भी कोरोना से बचे रहने के लिए कमर कसें और अपने लोगों को यह संदेश पहुंचाएं कि इस वक्त मास्क पहनने, शारीरिक दूरी का परिचय देने और खुद के साथ पास-पड़ोस में साफ-सफाई का ध्यान रखने की सख्त जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति ही कोरोना से लड़ने में सहायक बनेगी। चूंकि ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों की कमी के साथ-साथ स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है, इसलिए गांव वालों को कहीं अधिक सतर्कता बरतनी होगी। सतर्कता का स्तर बढ़ाने का संदेश इसलिए बार-बार दोहराना समय की मांग है, क्योंकि अभी भी कई इलाकों में ग्रामीण इससे अनजान हैं कि कोरोना संक्रमण से कैसे बचा जा सकता है?

ग्रामीणों को इससे भी परिचित कराने का काम प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए कि पड़ोस के कस्बों में आवाजाही न्यूनतम करने के साथ यह ध्यान रखा जाए कि शहरों में रह रहे लोग कुछ दिन आइसोलेट होने के बाद ही गांव में प्रवेश करें। इसकी आवश्यकता शहरों के करीब के उन गांवों में अधिक है, जो झुग्गी बस्तियों सरीखे हो गए हैं। ऐसे गांवों में न केवल आबादी सघन है, बल्कि वहां सफाई व्यवस्था भी ठीक नहीं। वैसे तो ग्रामीण जनता पौष्टिक भोजन का महत्व समझती है, लेकिन उसे इससे भी परिचित कराया जाना चाहिए कि वह अपनी प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाए? इस सबके अलावा ग्रामीण आबादी तक यह बात भी पहुंचनी चाहिए कि वह टीका लगवाने के लिए तैयार रहे और अपनी बारी की बेसब्री से प्रतीक्षा करे। इसकी आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण को लेकर विशेष उत्साह नहीं है। कुछ इसके महत्व से परिचित नहीं तो कुछ अज्ञानता, अंधविश्वास अथवा अफवाह के चलते टीका लगवाने से कतरा रहे हैं। इसकी चिंता ग्रामीण क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों को भी करनी चाहिए कि टीके को लेकर लोगों में जो हिचक है, वह टूटे।