इस पर हैरानी नहीं कि राफेल लड़ाकू विमान बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासौ के सीईओ का एक और बयान सामने आते ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके साथियों ने उसे खारिज कर दिया। यह तय है कि वह आगे भी ऐसा करते रहेंगे और इस क्रम में इसकी भी अनदेखी करना पसंद करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट पर भी भरोसा नहीं कर रहे हैं। समस्या यह नहीं है कि वह राफेल सौदे पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि इस सौदे को लेकर कुछ सवालों की गुंजाइश बनती थी और शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने दखल भी दिया। समस्या यह है कि वे सवाल उठाने के क्रम में तथ्यों से मेल न खाते आरोप उछाल रहे हैं।

एक तरह से इस मामले में वह आरोपी, वकील और जज की भूमिका में हैं। उन्हें न सरकार का स्पष्टीकरण रास आ रहा है, न सेना का और न ही दासौ कंपनी का। इतना ही नहीं, जो भी राफेल सौदे को सही बता रहा है उस पर उनका नजला गिर जा रहा है। यह और कुछ नहीं कि कीचड़ फेंककर भाग निकलने वाली राजनीति है। यदि राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं को राफेल सौदे में घोटाला होने का इतना ही यकीन है तो फिर वे दलाली के लेन-देन के वैसे कोई सुबूत क्यों नहीं पेश कर देते जैसे कुछ रक्षा सौदों और खासकर बोफोर्स तोप सौदे में सामने आए थे और जिसके चलते संदिग्ध दलाल ओट्टावियो क्वात्रोची को रातों-रात देश से भगा दिया गया था और फिर उसके लंदन स्थित बैंक खातों पर लगी रोक को भी गुपचुप तरीके से हटा दिया गया था।

बीते तीन-चार महीनों में यह चौथी बार है जब राफेल सौदे को लेकर दासौ की ओर से यह कहा गया कि इस सौदे में गड़बड़ी को लेकर उछाले जा रहे आरोप निराधार हैं। इस बार दासौ के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने यह कहीं विस्तार से बताया कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलांयस डिफेंस का चयन उनका अपना फैसला था।

उन्होंने यह भी साफ किया कि रिलांयस डिफेंस के साथ दासौ का संयुक्त उपक्रम बना है और इसमें ही कुछ पैसा निवेश किया गया है, लेकिन राफेल सौदे पर आरोपों की मशीन बन गए राहुल की मानें तो दासौ ने अनिल अंबानी की जेब में हजारों करोड़ रुपये डाल दिए हैं। एरिक ट्रैपियर बार-बार कह रहे हैं कि ऐसा नहीं है, लेकिन राहुल गांधी बिना किसी प्रमाण यही साबित करने पर तुले हैं कि दासौ ने अनिल अंबानी को मालामाल कर दिया।

भले ही राहुल गांधी एरिक ट्रैपियर के बयान को गढ़ा हुआ बताकर उसे खारिज करें, लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि खुद उनके कहे पर यकीन कर लिया जाए और तब तो बिल्कुल भी नहीं जब वह राफेल विमान की कीमत से लेकर रिलांयस डिफेंस में निवेश की रकम में लगातार घट-बढ़ कर रहे हों। नि:संदेह इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं कि राहुल राफेल सौदे पर मनचाहे आरोप उछालना बंद करेंगे, लेकिन उनसे यह अपेक्षा अवश्य की जाती है कि वह फ्रांस से राजनयिक रिश्तों की परवाह करें।