एक ऐसे समय जब हर आरोप का जवाब प्रत्यारोप से दिया जा रहा है तब यह हैरानी की बात है कि कांग्रेस इस आरोप पर मौन सा धारण किए है कि राहुल गांधी की पूर्व कंपनी के एक साझीदार ने एक रक्षा सौदे के तहत ऑफसेट अनुबंध हासिल किया था। मीडिया में इस आशय की खबरें आने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी से जिन सवालों के जवाब मांगे उनके संतोषजनक जवाब सामने आने ही चाहिए। इसलिए और भी आने चाहिए, क्योंकि एक तो राहुल गांधी बिना किसी सुबूत राफेल सौदे के मामले में चौकीदार चोर है का शोर मचाने में लगे हुए हैं और दूसरे अभी तक इस सवाल का भी जवाब नहीं आ पाया है कि क्या उन्होंने ब्रिटेन की नागरिकता ली थी? इस सवाल के जवाब में यह कहने का कोई मतलब नहीं कि दुनिया जानती है कि राहुल गांधी भारत में ही पैदा हुए।

सवाल यह नहीं है कि उनका जन्म कहां हुआ? सवाल तो यह है कि क्या उन्होंने कारोबार करने के उद्देश्य से ब्रिटेन की नागरिकता ली थी? कारोबार के सिलसिले में किसी भारतीय की ओर से किसी अन्य देश की नागरिकता लेने में हर्ज नहीं, लेकिन इस पर रहस्य का आवरण नहीं होना चाहिए। कम से कम उन्हें तो संशय को दूर ही करना चाहिए जो न केवल सार्वजनिक जीवन में हैं, बल्कि देश का प्रधानमंत्री भी बनना चाह रहे हैं। चूंकि नागरिकता संबंधी सवाल का कोई ठोस जवाब सामने नहीं आया है इसलिए वह आरोप और गंभीर दिखने लगा है जो पहले मीडिया के एक हिस्से में आया और फिर जिसे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उछाला।

आरोपों के तहत राहुल गांधी ने पहले भारत में बैकप्स नामक एक कंपनी स्थापित की, जिसमें उनकी बहन प्रियंका भी साझीदार थीं। इसके बाद वह इसी नाम की कंपनी ब्रिटेन में स्थापित करते हैं। इसमें गोवा के एक कांग्रेसी नेता के दामाद साझीदार बनते हैं। राहुल के इन्हीं साझीदार की एक कंपनी को कुछ समय बाद फ्रांस के साथ हुए रक्षा सौदे में ऑफसेट अनुबंध हासिल हो जाता है। अगर वास्तव में ऐसा हुआ तो यह कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। इन सवालों की गंभीरता इससे कम नहीं हो जाती कि 2009 में राहुल अपनी ब्रिटिश कंपनी से अलग हो जाते हैं। सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों के लिए यह ठीक नहीं कि वे दूसरों को तो सवालों के घेरे में खड़ा करें, लेकिन अपने जीवन से जुड़े सवालों पर मौन धारण कर लें।

क्या यह अजीब नहीं कि राहुल राफेल विमान सौदे को लेकर तो बिना किसी प्रमाण उल्टे-सीधे आरोप उछालने में लगे हुए हैं, लेकिन जब वह स्वयं मनमोहन सरकार के समय हुए एक रक्षा सौदे से जुड़े सवालों से दो-चार हुए तो कुछ कहने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं? शीशे के घर में रहने वालों को दूसरों के घर पत्थर उछालने के परिणाम से परिचित होना चाहिए। चूंकि राहुल राफेल सौदे में कथित गड़बड़ी को लेकर कुछ ज्यादा ही शोर मचा रहे हैं इसलिए उन्हें वित्त मंत्री के सवालों के जवाब आगे बढ़कर देने चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करते तो संदेह गहराएगा।

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