लद्दाख में चीन की धोखेबाजी को लेकर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री की ओर से दिए गए बयान की जैसी मनमानी व्याख्या की गई उसका ही यह परिणाम रहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा। कायदे से इसके बाद संशय और सवालों का सिलसिला खत्म हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं। न केवल राहुल गांधी यह प्रचारित करने में जुटे हुए हैं कि प्रधानमंत्री ने चीन के सामने घुटने टेक दिए, बल्कि कई स्वयंभू रक्षा-सुरक्षा विशेषज्ञ भी यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पास इस बारे में ज्यादा जानकारी है कि गलवन घाटी में क्या हुआ था और अब वहां के हालात क्या हैं?

क्या इससे बुरी बात और कोई हो सकती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर प्रधानमंत्री की बातों पर भरोसा करने के बजाय अपने हिसाब से ऐसे निष्कर्ष निकाले जाएं जो देश की जनता के बीच भ्रम पैदा करें? दुर्भाग्य से कई विपक्षी नेता और खासकर राहुल गांधी संकीर्ण राजनीतिक कारणों से यही कर रहे हैं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि वह ऐसा जानबूझकर कर रहे हैं। उनका यह व्यवहार दुर्भाग्यपूर्ण तो है, लेकिन उस पर हैरानी इसलिए नहीं, क्योंकि वह पहले भी ऐसा कर चुके हैं।

इसे विस्मृत नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी ने न केवल सर्जिकल स्ट्राइक पर अपनी खीझ निकाली थी, बल्कि एयर स्ट्राइक के भी सुबूत मांगे थे। अब वह इस पर यकीन करने को तैयार नहीं कि चीनी सेना की ओर से गलवन घाटी में अतिक्रमण करने की जो कोशिश की गई उसे हमारे जवानों ने नाकाम कर दिया और अब उसके सैनिक भारतीय सीमा में नहीं हैं। राहुल अपने गैर जिम्मेदाराना बयानों से केवल लोगों के मन में अविश्वास के बीज ही नहीं बो रहे, बल्कि एक तरह से वह भाषा बोल रहे हैं जो चीन बोल रहा है। बेहतर हो कोई उन्हें यह बताए-समझाए कि जब भी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा कोई मसला सामने आता है तब उनका आचरण भारतीय हितों के अनुकूल क्यों नहीं दिखता?

हालांकि वह कुछ सीखने के लिए तैयार नहीं, लेकिन उचित यह होगा कि वह इस पर गौर करें कि सर्वदलीय बैठक में शरद पवार, मायावती, ममता बनर्जी आदि ने किस तरह परिपक्वता का परिचय दिया। शरद पवार ने तो यह कहकर एक तरह से उन्हें आईना ही दिखा दिया कि गलवन में हमारे जवान हथियारों से लैस रहे हों या नहीं, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संधि का पालन करके सही किया। राहुल गांधी को यह बुनियादी बात पता होनी चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय संधियां राजनीतिक दल नहीं, देश करते हैं और दल से पहले देश के हित की चिंता की जाती है।