आखिरकार राहुल गांधी को अपनी गलतबयानी के लिए माफी मांगने को मजबूर होना पड़ा। इस माफी के लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैैं, क्योंकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर यह कहा था कि राफेल मामले में अब तो देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी मान लिया कि चौकीदार ने चोरी की है। यदि उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला दायर नहीं होता तो शायद वह अभी भी अपना गढ़ा हुआ झूठ दोहराते रहते। इसका अंदेशा इसलिए भी था, क्योंकि वह हर मामले में तथ्यों को परे रखकर मनचाहे बयान देने के आदी हो गए हैैं। भले ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का गलत तरीके से उल्लेख करने के लिए माफी मांग ली हो, लेकिन लगता यही है कि उनका इरादा अपने झूठ पर कायम रहने का था। इसीलिए पहले उन्होंने खेद भर जताया और अपने गलत बयान के लिए चुनावी गहमागहमी को जिम्मेदार ठहराया।

जब इससे बात नहीं बनी तो उन्होंने एक लंबा-चौड़ा हलफनामा देकर गोल-मोल तरीके से अफसोस जता दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी समझाने की कोशिश की कि खेद और माफी में कोई भेद नहीं। उम्मीद है कि अब उन्हें इन शब्दों के बीच का अंतर पता चल गया होगा, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं। उन्हें यह भी पता चलना चाहिए कि झूठ के पैर नहीं होते। वह केवल राफेल सौदे में ही नहीं, अन्य अनेक मामलों में भी झूठ का सहारा लेने में लगे हुए हैैं। वह कभी यह कहते हैैं कि मोदी सरकार ने अपने मित्र उद्योगपतियों के हजारों करोड़ रुपये के कर्जे माफ कर दिए हैैं और कभी यह साबित करने की कोशिश करते हैैं कि एक ऐसा कानून बनाया गया है जिसमें यह लिखा है कि आदिवासियों को गोली मारी जा सकती है।

समझना कठिन है कि राहुल गांधी झूठ का सहारा लेकर अपनी बात कहने की कोशिश क्यों करते हैैं? कम से कम कांग्रेस के अन्य नेताओं को तो इसका आभास होना ही चाहिए कि राहुल गांधी के मनगढ़ंत बयानों से पार्टी की छवि पर बुरा असर पड़ता है। विरोधी दल के नेताओं को कठघरे में खड़ा करने और उन पर झूठे आरोप लगाने में अंतर होता है। इस अंतर को समझने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि आज के समय में झूठ की पोल खुलने में देर नहीं लगती। आखिर राहुल गांधी अब जनता को यह कैसे समझाएंगे कि चौकीदार चोर है का उनका नारा सही है?

फिलहाल यह कहना कठिन है कि राफेल सौदे में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय क्या होगा, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि राहुल गांधी इस सौदे में गड़बड़ी का एक भी सुबूत नहीं दे सके हैैं। बिना सुबूत वह न केवल प्रधानमंत्री को चोर बता रहे हैैं, बल्कि अनिल अंबानी को भी। देखना है कि राहुल गांधी के अगले हलफनामे से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट होता है या नहीं? जो भी हो, यह सामान्य बात नहीं कि जिस काम के लिए एक हलफनामा पर्याप्त था उसके लिए उन्हें तीन हलफनामे देने होंगे। अगर वह पहले दिन ही माफी मांग लेते तो न तो उनकी फजीहत होती और न ही सुप्रीम कोर्ट का समय जाया होता।