इससे हास्यास्पद और कुछ नहीं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तो यह आरोप लगा रहे हैं कि वह बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल रहे हैं, लेकिन वह खुद भी यही काम करने में लगे हुए हैं और इस क्रम में सच-झूठ की भी परवाह नहीं कर रहे हैं। वह न केवल नए-नए झूठ गढ़ रहे हैं, बल्कि अपने पुराने झूठ पर भी टिके हुए हैं। ऐसा लगता है कि वह इससे अवगत नहीं कि झूठ के पैर नहीं होते और इसीलिए अब वह यहां तक कहने लगे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने सेना में काम करने वाले लोगों के पैसे खुद चोरी करके अनिल अंबानी के खाते में 30 हजार करोड़ रुपये डाल दिए। पहले वह अनिल अंबानी की जेब का हवाला देते थे। अब वह उनके बैंक खाते का जिक्र कर रहे हैं। क्या यह उचित नहीं होगा कि वह इसके सुबूत दे दें कि मोदी ने अनिल अंबानी के किस खाते में कब 30 हजार करोड़ रुपये डाल दिए? चूंकि वह अपने अटपटे आरोपों को लेकर गंभीर नहीं इसलिए अपनी सुविधा से इस रकम को घटाते-बढ़ाते भी रहते हैं। वह कभी 30 हजार करोड़ रुपये का जिक्र करते हैं और कभी 45 हजार करोड़ रुपये का। एक समय वह इस राशि को एक लाख तीस हजार करोड़ बताया करते थे। हाल की एक रैली में तो उन्होंने अनिल अंबानी को चोर भी कह दिया। यह कितना उचित है?

विगत दिवस ही राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता तब तिलमिला उठे थे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी कह दिया था। आखिर जब राहुल गांधी बिना किसी प्रमाण जिस-तिस को चोर कह सकते हैं तो इस सच का जिक्र क्यों नहीं किया जा सकता कि बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के आरोपों से राजीव गांधी की छवि तार-तार हो गई थी? क्या कांग्रेस यह नहीं जानती कि बोफोर्स सौदे में दलाली के लेन-देन के सुबूत भी सामने आए थे और इसके भी कि दलाली की रकम किसके खाते में पहुंची? अगर राहुल गांधी यह कहना चाहते हैं कि खुद उन्हें तो हर तरह का झूठ बोलने का अधिकार है, लेकिन अन्य कोई तथ्यों के हवाले से भी कुछ नहीं कह सकता तो एक तरह की सामंतशाही ही है। राहुल गांधी अब यह भी दावा कर रहे हैं कि मोदी ने जनता का पैसा चोरी करके नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के खातों में भी डाला। उनकी मानें तो मोदी ने विजय माल्या को भी दस हजार करोड़ रुपये दिए। क्या यह उनकी और उनके साथियों की जिम्मेदारी नहीं कि लोगों को बताएं कि यह काम कब और कैसे हुआ, क्योंकि तथ्य तो यही है कि विजय माल्या को जो अनापशनाप कर्ज मिला वह मनमोहन सरकार के समय मिला था। राहुल गांधी अपने इस पुराने दावे को भी जब-तब दोहराते रहते हैं कि मोदी ने अपने चंद मित्र उद्योगपतियों के इतने लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ कर दिया। यह निरा झूठ है, लेकिन समस्या यह है कि राहुल इस तरह का झूठ बोलने में माहिर हो गए हैं। वह यह समझें तो बेहतर कि यह महारत उनका भला नहीं करने वाली।

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