राहुल गांधी एक अर्से से जिस तरह उद्योगपतियों को खलनायक साबित करने और उन्हें निर्धन तबके का शत्रु बताने में लगे हुए हैं, वह अति वामपंथी विचार ही नहीं, बल्कि माओवादियों सरीखे सोच का परिचायक है। शायद यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें निशाने पर लेते हुए यह कहा कि कोई भी उद्योगपति कांग्रेस शासित राज्य में निवेश करने से पहले पचास बार सोचेगा। यह स्वाभाविक ही है, क्योंकि राहुल गांधी लगातार उद्योगपतियों पर हमला कर रहे हैं। हालांकि, वह यह काम पिछले आम चुनावों के समय से ही करते चले आ रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने अपने तेवर कुछ अधिक तीखे कर लिए हैं। वह अंबानी और अदाणी को खास तौर पर निशाने पर ले रहे हैं।

इसके अलावा देश भर में घूम-घूमकर यह कह रहे हैं कि मोदी सरकार केवल चंद उद्योगपतियों के ही हित में काम करती है। संभवतः राहुल गांधी यह जानबूझकर भूल रहे हैं कि अंबानी, अदाणी और ऐसे ही अन्य उद्योगपति 2014 के बाद सामने नहीं आए। वे तो कांग्रेस के जमाने में ही फले-फूले। यह विचित्र है कि राहुल गांधी इसके बावजूद अंबानी और अदाणी पर हमला करने में लगे हुए हैं कि उनकी ओर से कांग्रेस शासित राज्यों में निवेश किया जा रहा है। स्पष्ट है कि यह निवेश तभी संभव हो पा रहा है जब कांग्रेस शासित राज्य उन्हें निवेश के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री भी राहुल गांधी की बातों से सहमत नहीं। इसका उदाहरण अदाणी समूह की ओर से कांग्रेस शासित तेलंगाना में निवेश किया जाना है। इसके पहले राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार के समय भी अदाणी समूह ने राज्य में भारी-भरकम निवेश की घोषणा की थी।

समझना कठिन है कि यदि राहुल गांधी को इन उद्योगपतियों से इतनी ही चिढ़ है तो वे अपने मुख्यमंत्रियों को इसके लिए रोकते क्यों नहीं कि अमुक-अमुक उद्योगपति उनके यहां निवेश न करने पाएं। राहुल गांधी उद्योगपतियों को कठघरे में खड़ा करके केवल धन का सृजन करने वालों को ही लांछित नहीं कर रहे हैं, बल्कि उद्यमशीलता पर प्रहार भी कर रहे हैं। वह बार-बार गरीबों की तो बात करते हैं, लेकिन यह समझने के लिए तैयार नहीं कि गरीबों का भला तब होगा जब देश में ज्यादा से ज्यादा उद्योग लगेंगे।

यह अतिवादी वाम विचार ही है कि सब कुछ सरकार को करना चाहिए। गरीबों के उत्थान समेत आर्थिक मामलों में राहुल गांधी के जैसे प्रतिगामी विचार हैं, उनका तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विशेष रूप से पी. चिदंबरम और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कभी समर्थन नहीं करेंगे। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने वैसी आर्थिक नीतियों को नहीं अपनाया था, जैसी राहुल गांधी चाह रहे हैं। इस पर आश्चर्य नहीं कि राहुल गांधी जो भाषा बोल रहे हैं, उसे उनके इर्द-गिर्द के चंद लोग ही दोहरा रहे हैं।