-----लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे का उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होगा जब तक कि यात्रियों को गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचने का भरोसा न हो। -----लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे पर पत्थर मारकर गाडि़यों को क्षतिग्रस्त करने और यात्रियों से लूटपाट की घटनाओं ने इस शानदार राजमार्ग पर सुरक्षा इंतजामों पर सवाल खड़े किए हैं। देश के सबसे शानदार राजमार्गो में शामिल इस छहलेन वे ने राजधानी से आगरा जाने का समय जरूर कम कर दिया है लेकिन, यदि लोग खुद को असुरक्षित महसूस करने लगें तो यह सरकार की नाकामी मानी जाएगी। कुछ दिनों में इस मार्ग पर नियोजित लूटपाट की घटनाओं ने साबित किया है कि यातायात संचालन से पहले ही इस पर पुलिस की अनवरत पेट्रोलिंग के इंतजाम किए जाने चाहिए थे। वैसे, सरकार ने इसकी योजना बना रखी है लेकिन, अभी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। 302 किमी के सफर में 22 पुलिस चौकियां बनाई जानी हैं लेकिन, अभी तक एक का भी काम शुरू नहीं हो सका है। सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी इस सड़क के किनारे पड़ने वाले दस जिलों की स्थानीय पुलिस पर ही है लेकिन, वह इस दायित्व को पूरी तरह नहीं निभा पा रही हैं। खुद यात्री मानते हैं कि यदि एक्सप्रेस वे पर लाइट का काम ही पूरा हो जाए, तब भी रात में चलना कमोबेश सुरक्षित रहेगा और आपराधिक घटनाओं में कमी आ जाएगी लेकिन, अभी तक यह काम भी पूरा नहीं हो सका है। राजमार्गो पर आपराधिक घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। इससे पहले एनएच-९१ पर बदमाशों ने एक पूरे परिवार को बंधक बनाकर मां-बेटी से दुराचार किया था। लंबी दूरी की अन्य सड़कों पर भी वाहन रोककर लूटपाट की घटनाएं हो चुकी हैं, इसलिए पुलिस पेट्रोलिंग की अनिवार्यता पर जोर दिया जा रहा है। अपराधों के अलावा सड़कों पर दुर्घटनाएं भी काफी हो रही हैं, जिसका मुख्य कारण जानवरों का अचानक सड़क पर आ जाना है। कुछ दिन पहले इलाहाबाद-लखनऊ मार्ग पर एक जानवर की वजह से ही एक परिवार के पांच लोगों की मौत हो गई थी। लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे पर सरकार लड़ाकू विमान उतारकर इसकी मजबूती का परीक्षण कर चुकी है लेकिन, इसका उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होगा जबकि यात्रियों को गंतव्य तक सुरक्षित पहुंच जाने का भरोसा न हो। यह तभी हो सकता है जब दोनों तरफ बाड़ लगाने के साथ ही जगह-जगह पुलिस के इंतजाम हों।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]