हालांकि यह बात पहले भी उठाई जा चुकी है और सरकार के प्रयासों का काफी कुछ असर भी हुआ है, लेकिन फिर भी ब्लू व्हेल गेम का खतरा बच्चों के बीच बना हुआ है। यह गेम कितना खतरनाक है, इसका अहसास सिर्फ इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अब तक दुनिया में सौ से अधिक बच्चे इसके शिकंजे में फंसकर मौत को गले लगा चुके हैं। भारत में भी बच्चे इसके शिकंजे में फंसे और चुनौती भरे काम करने के चक्कर में खुद को नुकसान पहुंचा बैठे। बहुमंजिले भवनों से बच्चों के कूद जाने की घटनाएं हुईं। बाद में पता चला कि वह ब्लू व्हेल गेम खेलते थे और चरम तक पहुंचते उन्हें टास्क मिला था कि वह अमुक भवन जाकर छलांग लगा दें। इसे देखते हुए ही केंद्र सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन इंटरनेट के अथाह समुद्र में इसके लिंक अब भी बरकरार हैं। उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने भी इस पर चिंता जताई है और बच्चों की गतिविधियों पर सतर्क निगाह रखने का सुझाव अभिभावकों को दिया है। इंटरनेट में अपेक्षा से अधिक समय देने वाले किशोर उम्र के बच्चे इस गेम से जुड़े हो सकता हैं।

इंटरनेट पर सिर्फ ब्लू व्हेल का खतरा ही नहीं बना हुआ है। इस तरह के तमाम और खेल भी हैं, जो बच्चों को भ्रमित कर रहे हैं और उनकी चेतना पर प्रहार कर रहे हैं। जिस तरह की अपसंस्कृति इंटरनेट पर परोसी जा रही है, वह भी किशोर मस्तिष्क के लिए बहुत खतरनाक है। आज किशोर उम्र के लगभग हर बच्चे के हाथ में मोबाइल फोन है और अधिकांश को इंटरनेट की सुविधा भी हासिल है। डाटा युग में इसकी अनदेखी की भी नहीं जा सकती। इसलिए सरकार और अभिभावकों की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई हैं। जरूरी है कि इंटरनेट पर वयस्क सामग्रियों की बाढ़ को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं। इसके लिए तकनीकी विशेषज्ञों से बात करके रास्ता निकाला जा सकता है। महत्वपूर्ण यह है कि स्कूलों में इसके लिए विशेष रूप से अभियान शुरू किए जाएं। बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा से ही बताया जाए कि आगे चलकर उनके लिए क्या उपयोगी हो सकता है और क्या नहीं। जाहिर है कि इसकी पहल सरकार को ही करनी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]