----आर्थिक नुकसान की भरपाई तो हो जाएगी पर बीएचयू और उत्तर प्रदेश सरकार की साख पर जो बट्टा लगा है उसकी भरपाई क्या हो सकेगी। ----कभी ऐसा भी समय था जब विश्वविद्यालय परिसर में खाकी वर्दी का दिख जाना ही खबर बन जाती। सवाल उठ जाते कि शिक्षा के मंदिर में पुलिस पहुंची ही कैसे? लेकिन, समय बदला और अब पिछले चार दिन से काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में जो घट रहा है, वह महामना की इस बगिया को ही कलंकित नहीं कर रहा, विवि और शहर प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा कर रहा है। बीएचयू में एक छात्रा के साथ न सिर्फ छेड़छाड़ होती है, बल्कि उसके कपड़े तक फाड़ने की कोशिश की जाती है और विवि प्रशासन असंवेदनशील बना रहता है। होना यह चाहिए था कि घटना का पता चलते ही रिपोर्ट दर्ज करवाई जाती और दोषी छात्रों को दंडित किया जाता पर हुआ उलटा। छात्राएं भला मांग भी क्या रही थीं! यही न कि परिसर में आए दिन होने वाली छेड़छाड़ से उन्हें सुरक्षा चाहिए। यह तो वैसे ही हर विवि प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। प्रश्न यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र-छात्राओं के बीच इतनी वैमनस्यता आई कैसे और छात्राओं पर लाठीचार्ज से पहले प्रशासन के मन में एक बार भी यह बात क्यों नहीं आई कि वे सब उन्हीं के बच्चे हैं? बीएचयू प्रशासन और पुलिस से निराश हो पीडि़त छात्राओं ने आंदोलन का रास्ता चुना। २२ सितंबर को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की शहर में मौजूदगी से उन्हें आस थी कि उनकी बात सुनी जाएगी पर ऐसा हुआ नहीं और कुलपति अपने अडि़यल रुख पर कायम रहे। उन्होंने छात्राओं के बीच जाकर उनकी मांग सुनने से इन्कार तो किया ही, उन्हें उपेक्षित भी किया।लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं और छात्र-छात्राओं को भी यह ख्याल रखना चाहिए कि कहीं वे शिक्षकों की राजनीति का शिकार तो नहीं हो रहे। कोई संगठन अपने हित साधने के लिए उनका उपयोग तो नहीं कर रहा। विवि प्रशासन और छात्र-छात्राओं में से किसी ने धैर्य नहीं दिखाया। नतीजा, माहौल खराब हुआ और लोगों की जान भी आफत में पड़ गई। तोड़फोड़-आगजनी से आर्थिक नुकसान हुआ वह अलग। आर्थिक नुकसान की भरपाई फिर भी तो हो जाएगी परंतु बीएचयू और उत्तर प्रदेश सरकार की साख पर जो बट्टा लगा है उसकी भरपाई क्या कभी हो सकेगी।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]