राज्यपाल द्वारा युवाओं के भविष्य के लिए नए संकल्प के साथ इस साल काम करने की सलाह देना सरकार को यह संदेश देती है कि अभी उसे इस दिशा में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। विगत दिवस जम्मू विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में राज्यपाल ने कहा था कि यह दुख की बात है कि जम्मू-कश्मीर में युवाओं व विद्यार्थियों का सही संरक्षण नहीं हो पा रहा है। बार-बार परीक्षाएं स्थगित होना और स्कूल बंद होने से उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। इस समय राज्य के जो हालात हैं, वह किसी से छुपे नहीं हैं। कश्मीर के कुछ जिलों में आए दिन अलगाववादियों द्वारा बंद करवाने और जम्मू संभाग के सीमांत क्षेत्रों में पाकिस्तानी गोलीबारी के कारण विद्यार्थियों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। स्कूल कई दिन बंद रहते हैं। नतीजतन पढ़ाई भी नहीं हो पाती है। राज्य में बेरोजगारी की समस्या पहले से ही विकराल है। युवा आए दिन सड़कों पर उतर कर रोजगार व न्याय की गुहार लगा रहे हैं। राज्य सरकार को इस पर मंथन करना चाहिए कि आखिर उसकी नीतियां कहां पर सही लागू नहीं हो पा रही है।

केंद्र व राज्य सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले अठाइस साल से जम्मू-कश्मीर आतंकवाद से जूझ रहा है। पाकिस्तान का यह हमेशा प्रयास रहता है कि वह यहां के युवाओं को गुमराह कर आतंकी गतिविधियों में संलिप्त करे। ऐसे में राज्यपाल की चिंता और राज्य सरकार को दी गई सलाह पर चिंतन करने की जरूरत है। यह सही है कि कश्मीर में आतंकवाद को समाप्त करने और भटके हुए युवाओं को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए कुछ महीनों से ऑपरेशन आल आउट चलाया हुआ है। सिर्फ यहीं प्रयास काफी नहीं हैं। केंद्र व राज्य सरकार को यहां के छह लाख से अधिक बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने के लिए पुख्ता नीति बनानी होगी। कौशल विकास जैसे कार्यक्रमों से भी युवाओं की ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल किया जा सकता है। सीमांत क्षेत्रों में पढऩे वाले विद्यार्थियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था भी करनी होगी ताकि पाकिस्तान की ओर से होने वाली गोलीबारी के दौरान उनकी पढ़ाई बाधित न हो। नए साल में राज्य सरकार को सभी पहलुओं पर विचार कर एक नई शुरुआत करने की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]