झारखंड सरकार की तैयारी 20 से कम छात्रों की संख्या वाले 76 सौ स्कूलों को एक-दूसरे में मर्ज करने की है। सरकार का मानना है इससे जहां शिक्षकों की कमी का दंश झेल रहे स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण व्यवस्था बहाल हो सकेगी, वहीं मानव संसाधन का बेहतर सदुपयोग भी हो सकेगा। स्कूलों की वर्तमान स्थिति की बात करें तो कहीं-कहीं 20-30 छात्रों पर चार-पांच शिक्षक हैं तो कहीं 100 से अधिक छात्रों के लिए भी यही व्यवस्था है। कई स्कूल विषयवार शिक्षकों की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं तो कई स्कूलों में छात्रों की तुलना में कमरे और अन्य संसाधन कम हैं। ऐसे में सरकार के इस प्रयोग से बहुत हदतक छात्र-शिक्षक अनुपात में एकरूपता आने की संभावना है। साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्या भी बहुत हद तक दूर हो जाने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, इंफ्रास्ट्रक्चर समेत अन्य मदों में खर्च होने वाली भारी भरकम राशि में भी बचत की गुंजाइश होगी। सरकार जिन उद्देश्यों के साथ स्कूलों के मर्जर की बात कर रही है, उसकी सराहना की जानी चाहिए। इससे इतर सोचना यह भी होगा कि साक्षरता के राष्ट्रीय बेंचमार्क पर झारखंड अब भी पीछे है। ऐसे में स्कूलों के मर्जर से पूर्व इसका अच्छी तरह से आकलन कर लेना होगा कि स्कूलों के एक-दूसरे में मर्ज होने से छात्रहित प्रभावित न हो।

किसी क्षेत्र विशेष के स्कूलों का मर्जर दूर के विद्यालयों में न हो जाए, पठन-पाठन के मानकों के अनुरूप छात्र-शिक्षक अनुपात बरकरार रहे। बहरहाल राज्य सरकार ने प्रोजेक्ट सस्टनेबल एक्शन फॉर ट्रांसफार्मिंग ह्यूमन कैपिटल (साथ) के तहत स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए बोस्टन कंसलटेंट ग्रुप के साथ करार किया है। सरकार का दावा अगले महीने तक स्कूलों के मर्जर की प्रक्रिया पूरी कर लेने की है। मर्जर की कार्रवाई उपायुक्तों की अध्यक्षता वाली जिला शिक्षा समिति करेगी। इस प्रोजेक्ट के तहत स्पेशल लर्निंग क्लासेज, उम्र के अनुसार कक्षाओं में नामांकन तथा स्कूलों की मानीटङ्क्षरग पद्धति में बदलाव लाया जाएगा। सरकार ने इसके लिए दो साल का रोडमैप तैयार किया है। शिक्षा के क्षेत्र में झारखंड सरकार के इस बेस्ट प्रैक्टिसेज तथा इनोवेशन को नीति आयोग ने भी सराहा है। देखना यह होगा कि सरकार की यह पहल राज्य के शिक्षण व्यवस्था में क्या परिवर्तन लाती है।

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हाइलाइटर

स्कूलों के मर्जर से पूर्व इसका अच्छी तरह से आकलन कर लेना होगा कि स्कूलों के एक-दूसरे में मर्ज होने से छात्रहित प्रभावित न हो। पठन-पाठन के मानकों के अनुरूप छात्र-शिक्षक अनुपात बरकरार रहे।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]