बेशक सरकार लाख दावे करे कि पंजाब से नशे का नाश हो गया है, परंतु धरातल पर सच्चाई बिल्कुल उल्ट है। अब भी नशे का धंधा पहले की तरह ही बदस्तूर जारी है। राज्य में कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता जिस दिन हेरोइन से लेकर अन्य प्रकार के नशीले पदार्थ न पकड़े जाते हों। भारत-पाक सीमा तो नशा तस्करी के लिए कुख्यात ही हो गई है। लगभग हर रोज सीमा पर स्थित खेतों में या फिर तारों के पास हेरोइन के पैकेट मिलना आम बात हो गई है। राज्य में एसआइटी के गठन के बाद भी फर्क सिर्फ इतना आया है कि पहले नशा आम मिल जाता था, जबकि अब चोरी-छिपे मिल रहा है। पहले नशा पकड़ा नहीं जाता था अब पकड़ में आ रहा है, परंतु नशे की आवक अब भी वैसे की वैसे ही है। न तो राज्य में नशा करने वाले कम हुए हैं और न ही नशा बेचने वाले। पुलिस एक तस्कर को पकड़ कर जेल में बंद करती है तो उसके परिवार के अन्य लोग नशे का धंधा शुरू कर देते हैं। राज्य में अभी तक भी नशे के धंधे पर पूरी तरह से नकेल नहीं कसी जा सकी है। इसके पीछे एक सबसे बड़ी नशे के आदी लोगों की रिहेबिलेशन भी है।

सरकार राज्य में नशे को पकड़ने का काम तो कर रही है, परंतु नशे के आदी लोगों को फिर से मुख्यधारा में लाने के लिए शायद अभी तक वैसे प्रयास नहीं हो रहे हैं जैसे कि राज्य के हालातों को देखते हुए होने चाहिए। सरकार ने राज्य में नशा छुड़ाओ केंद्र तो खोले, परंतु उनकी भी हालत दयनीय है। नशा छुड़ाओ केंद्रों में न तो दवाइयां ही मिल पाती हैं और न ही केंद्रों में स्टाफ ही उपलब्ध है। नशे की खिलाफ छेड़ी गई सरकार की जंग तब तक सफल नहीं हो पाएगी जब तक इसे सभी तरफ से नहीं लड़ा जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह नशे पर नकेल के लिए सबसे पहले तो कानून में संशोधन करे। नशीली दवाइयों के पकड़े जाने पर मामला कास्टमेटिक एक्ट की बजाय एनडीपीएस में दर्ज हो, नशे के आदी लोगों की पहचान करके उन्हें इलाज मुहैया करवाए, ताकि राज्य में कोई नशा करने वाला न रहे। जब नशेड़ी ही नहीं रहेंगे तो नशा स्वत: ही खत्म हो जाएगा। नशा छोड़ने वालों की निशानदेही पर तस्कर भी पुलिस के हत्थे चढ़ जाएंगे।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]