पंजाब मंत्रिमंडल ने जेलों में 305 वार्डर और 20 असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट के पदों को फिर से मंजूरी देकर उचित ही किया है। इस फैसले से जेल प्रबंधन को दुरुस्त करने के साथ ही जेलों की निगरानी बेहतर तरीके से की जा सकेगी। नाभा जेल ब्रेक, गुरदासपुर सेंट्रल जेल में हुए दंगों जैसी बड़ी घटनाओं के अलावा भी प्रदेश की जेलों से आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं जिनसे लगता है कि जेलों में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। प्रदेश की अलग-अलग जेलों में जब भी छापे पड़ते हैं तो वहां से मोबाइल फोन, सिम कार्ड, नशे की सामग्री आदि की बरामदगी होती है।

हर बार कार्रवाई करने और अनियमितता रोकने की बात की जाती है लेकिन हकीकत यह है कि जेलों में आपत्तिजनक सामग्री का पहुंचना जारी है। जेलों में मोबाइल फोन व नशा पहुंचने से यह बात साफ हो जाती है कि जिस तरह की निगरानी होनी चाहिए वैसी नहीं हो रही है। यह बात भी सामने आती है कि कैदियों की संख्या के लिहाज से जेलों के बेहतर प्रबंधन के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं है। प्रदेश की कई जेलों में आतंकवादी से लेकर गैंगस्टर तक बंद हैं। वे कई बार जेलों में रहकर ही फेसबुक पर सामग्री अपलोड करते रहते हैं और बाहर की दुनिया से संपर्क में रहते हैं। इतना ही नहीं जेलों में बंद खतरनाक अपराधी मनमानी भी करते हैं और जेल मुलाजिम इनके सामने कई बार असहाय नजर आते हैं। गुरदासपुर की जेल में दंगे का होना इसका प्रमाण है। जेल वार्डर व असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट के खाली पदों को भरने से कैदियों की निगरानी में मदद तो मिलेगी ही, इसके साथ ही जेलों में अनियमितताओं पर भी रोक लगने की उम्मीद की जा सकती है। सरकार को जेलों की व्यवस्था चाक-चौबंद करने के लिए हर वह कदम उठाना ही चाहिए जो जरूरी हों।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]