लाकडाउन से बाहर आए राज्यों में सार्वजनिक स्थलों पर चहल-पहल दिखना स्वाभाविक है, लेकिन यह चिंता की बात है कि इस दौरान न तो मास्क के सही इस्तेमाल को लेकर अपेक्षित सजगता दिखी और न ही शारीरिक दूरी बनाए रखने की परवाह ढंग से की गई। जब पहले ही दिन ऐसी बेपरवाही दिखी तो यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनेगी? यह समझ आता है कि करीब 50 दिनों के लाकडाउन के चलते लोग ऊब गए थे, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इसकी चिंता न की जाए कि थोड़ी सी भी असावधानी संक्रमण को नए सिरे से सिर उठाने का मौका दे सकती है। नि:संदेह संक्रमण के मामलों में तेजी से कमी आई है और प्रतिदिन संक्रमण के मामले घटकर एक लाख से भी कम रह गए हैं, लेकिन ये इतने भी कम नहीं हुए हैं कि जरूरी सावधानी का परिचय देना बंद कर दिया जाए। बीते 24 घंटों में कोरोना संक्रमण के करीब 85 हजार मामले मिलना और दो हजार से अधिक लोगों की मौत हो जाना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि कोविड महामारी अभी भी जानलेवा बनी हुई है।

यह सही है कि लोगों को सतर्कता का परिचय देने के लिए प्रेरित करना राज्य सरकारों और उनके प्रशासन का काम है, लेकिन जनता की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है या नहीं? आखिर इस जिम्मेदारी का परिचय स्वेच्छा से क्यों नहीं दिया जा सकता? क्या यह चाहा जा रहा है कि हर चौराहे, गली और नुक्कड़ पर पुलिस का पहरा बैठा दिया जाए? यह तो संभव ही नहीं है। कोविड जैसी खतरनाक महामारी का तभी मुकाबला किया जा सकता है, जब जनता शासन-प्रशासन को सहयोग दे। यह सबको समझना ही होगा कि महामारी पर लगाम तभी लगेगी, जब आम लोग संक्रमण से बचे रहने के लिए सचेत रहेंगे। आखिर मास्क का सही तरह इस्तेमाल करने और शारीरिक दूरी का परिचय देने में क्या परेशानी है? अब तक तो इस सबका परिचय देना लोगों की आदत का हिस्सा बन जाना चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि कोविड प्रोटोकाल को लेकर पुलिस-प्रशासन को सख्ती दिखाते हुए एक साल से अधिक का समय बीत चुका है। इस एक साल में सभी इससे अवगत हो चुके हैं कि कोरोना किस तरह रह-रहकर सिर उठा लेता है। आखिर कौन है, जो कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की भयावहता से परिचित नहीं? किसी को भी इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि जब तक 50-60 करोड़ लोगों को टीका नहीं लग जाता, तब तक मास्क का समुचित इस्तेमाल, शारीरिक दूरी का पालन और सेहत के प्रति अतिरिक्त सतर्कता ही कोरोना से बचाव में सहायक है।