इतिहास पर गर्व
बिहार का स्वर्णिम अतीत वापस लाने के लिए जरूरी है कि हम उसे जिंदा रखें। पिछले दो-तीन साल उल्लेखनीय माने जाएंगे जब राज्य में चंपारण सत्याग्रह शताब्दी, प्रकाशोत्सव और विजयोत्सव जैसे आयोजन तथा कई समाज सुधार आंदोलन चलाए गए।
मान्यता है कि बिहार का इतिहास ही देश का शुरुआती इतिहास है। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि देश की अहम संस्थाएं और परंपराएं सर्वप्रथम इसी राज्य में खड़ी हुईं। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को तो दुनिया का पहला विश्वविद्यालय माना जाता है। इसके अलावा गया, बोधगया, वैशाली, मुंगेर, राजगीर और पटना में भी कई गौरवचिन्ह मौजूद हैं। इस धरती ने बुद्ध को ज्ञान दिया तो भगवान महावीर और गुरु गोविंद सिंह को जन्म। यह खुशी की बात है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सूबे के गौरवशाली इतिहास के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। इसके चलते राज्य में गुरु गोविंद सिंह का प्रकाशोत्सव अंतरराष्ट्रीय महोत्सव के रूप में मनाया जाता है तो चंपारण सत्याग्रह शताब्दी आयोजन साल भर चलते हैं। बिहार अपनी सीता मैया का जन्मदिन मनाता है तो वीर कुंवर सिंह की जयंती पर उनके शौर्य का स्मरण करके अपना सीना चौड़ा करता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर कहते हैं कि बिहार का स्वर्णिम अतीत वापस लाना है। इसकी धरती तैयार करने के लिए उन्होंने सूबे में शराब, दहेज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर प्रतिबंध लगाया। बहरहाल, अभी बहुत कुछ करना बाकी है। सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा प्रणाली को सुधारने की है। अतीत में तमाम अन्य विशिष्टताओं के बावजूद बिहार की असली धाक शिक्षा व्यवस्था के लिए ही थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिक्षा का मौजूदा परिदृश्य निराशाजनक है। शिक्षा प्रणाली इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, खराब माहौल और दोषपूर्ण परीक्षा व्यवस्था जैसी कठिनाइयों का सामना कर रही है। इसे ठीक करने के लिए अब तक किए गए प्रयास अपेक्षानुसार प्रभावकारी साबित नहीं हुए। इससे स्पष्ट है कि शिक्षा प्रणाली को पटरी पर लाने के लिए ज्यादा इच्छाशक्ति की जरूरत है। इसी तरह मौजूदा चिकित्सा प्रणाली भी ‘रुग्ण’ है। राजकीय अस्पतालों में वास्तविक जरूरतमंदों को न तवज्जो मिलती है और न इलाज। नारी सशक्तीकरण के लिए तो बिहार जैसा काम शायद ही किसी अन्य राज्य में हुआ होगा, इसके बावजूद महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित एवं अपमानित करने तथा महिलाओं के प्रति अन्य अपराध जारी हैं। इनसे मुक्ति पाकर ही हम स्वर्णिम अतीत की ओर बढ़ सकते हैं।
[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]