सड़क सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश केएस राधाकृष्णनन की अध्यक्षता में गठित कमेटी की ओर से पेश यह आंकड़ा चौंकाने और साथ ही चिंतित करने वाला है कि पांच सालों में सड़क पर गड्ढों के कारण करीब 15 हजार लोगों की मौत हुई है। 2012 से लेकर 2017 तक के इस भयावह आंकड़े को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सही कहा कि ये मौतें तो आतंकी हमलों में होने वाली मौतों से भी अधिक हैैं। उसके इस निष्कर्ष से भी असहमत नहीं हुआ जा सकता कि सड़क के गड्ढों के कारण होने वाली इतनी अधिक मौतों से यही पता चलता है कि प्रशासन सड़कों का रखरखाव उचित तरीके से नहीं कर रहा है। स्पष्ट है कि इस प्रशासन में नगर निकायों से लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण तक आते हैैं।

कहना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सड़कों पर गड्ढों के कारण होने वाले हादसों को रोकने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार क्या जतन करती हैैं और उससे हालात कितने बदलते हैैं, क्योंकि समस्या केवल यही नहीं है कि सड़कों पर गड्ढे जानलेवा हादसों को जन्म दे रहे हैैं, बल्कि यह भी है कि अपने देश में मार्ग दुर्घटनाओं में प्रति वर्ष एक लाख से अधिक लोग जान गंवा देते हैैं। बड़ी संख्या में लोग घायल भी होते हैैं। इनमें से कुछ तो हमेशा के लिए अपंग हो जाते हैैं। नि:संदेह सरकारों और उनकी एजेंसियों को न केवल यह देखना होगा कि सड़कें गड्ढामुक्त हों, बल्कि इसकी भी चिंता करनी होगी कि वे बेहिसाब दुर्घटनाओं का ठौर न बनें। इस चिंता में आम जनता को भी भागीदार होना होगा, क्योंकि यह एक तथ्य है कि बड़ी संख्या में मार्ग दुर्घटनाएं लोगों की लापरवाही के चलते होती हैैं।

जैसे यह स्वीकार नहीं हो सकता कि बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर गड्ढों के कारण मौत के मुंह में चले जाएं वैसे ही इसका कोई औचित्य नहीं कि बेहतर सड़कें भी दुर्घटनाओं का गवाह बनें। ऐसा इसलिए भी रहा है, क्योंकि वाहन चलाते वक्त आवश्यक सावधानी का परिचय देने से बचा जा रहा है। सड़कों से जुड़ी एक और समस्या यह है कि वे अतिक्रमण का शिकार होने के साथ ही गंदगी से अटी रहती हैैं। यह अतिक्रमण यातायात को बाधित करने के साथ ही प्रदूषण का कारण भी बन रहा है। ये सारी समस्याएं शहरीकरण को लेकर जो गंभीर सवाल खड़े कर रही हैैं उनका समाधान सही तरह से तब होगा जब आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार होंगे। शहरीकरण की एक बड़ी समस्या सार्वजनिक स्थलों पर साफ-सफाई की कमी है। इस कमी को दूर करने के प्रति थोड़ी सी भी सजगता हालात बदल सकती है।

नि:संदेह एक आम नागरिक सड़क के गड्ढे पाटने का काम नहीं कर सकता, लेकिन वह सुरक्षित यातायात को लेकर तो सचेत रह ही सकता है। ऐसा करके वह न केवल खुद जोखिम से बचेगा, बल्कि औरों को भी बचाएगा। अच्छा होगा कि विभिन्न समस्याओं के समाधान की पहल कर रहा सुप्रीम कोर्ट इस पर भी ध्यान दे कि आम लोग एक नागरिक के तौर पर अपने दायित्व बोध से कैसे लैस हों ताकि शहरीकरण संवर सके।