पंजाब में किसानों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। पहली अप्रैल से गेहूं की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश की कई मंडियों में किसान अपनी फसल लेकर परेशान हो रहे हैं। बठिंडा में बुधवार को खरीद न होने पर किसानों ने कहीं जाम लगाया तो कहीं सरकार पर दबाव बनाने के लिए पानी की टंकी पर चढ़ गए। मंडी कलां में तो विवाद बढ़ने पर तहसीलदार को बंधक बना लिया। मौसम बार-बार अपने मिजाज को बदल रहा है। मंडियों में जहां गेहूं की ढेरियों का अंबार लगा हुआ है वहीं, बहुत सारी फसल खेतों में खड़ी पड़ी है। कई किसान इसीलिए फसल काटने में विलंब कर रहे हैं कि कहीं मंडियों में ले जाने पर बारिश की मार न पड़ जाए। यदि मंडियों में गेहूं की बेकद्री होती है और बारिश में बर्बादी होती है तो इसके लिए सरकार ज्यादा जिम्मेदार होगी। कई मंडियों में बारिश की स्थिति में बचाव के पर्याप्त प्रबंध नहीं हैं। तिरपालों की कमी तो है ही, मंडियों में पानी भी लग जाता है।

ऐसी स्थिति में सरकार को यह देखना चाहिए कि गेहूं की खरीद में किसी भी तरह की लापरवाही न होने पाए। किसानों की फसल यथाशीघ्र खरीदने की व्यवस्था करने के साथ ही सरकार को यह भी देखना होगा कि किसानों को भुगतान भी तत्काल हो। ट्रांसपोर्ट यूनियनों से गतिरोध के चलते फसल की ढुलाई को लेकर भी कई मंडियों में गंभीर समस्या बनी हुई है। हालांकि सरकार ने सख्ती की है और इसका असर भी दिख रहा है लेकिन इस पर लगातार नजर बनाए रखने होगी और इसकी निगरानी करनी होगी। सरकार ने लिफ्टिंग को लेकर लापरवाही सामने आने पर कुछ ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट करके उचित किया है। किसानों की समस्या के समाधान के लिए सरकार को हर स्तर पर तेजी से कदम उठाने चाहिए और लापरवाही पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई से भी परहेज नहीं करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]