पंजाब में किसानों की आत्महत्या न रुकना चिंता वाली बात है। प्रदेश सरकार ने अभी तक जितने भी कदम उठाए गए हैं वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। मौजूदा से लेकर पूर्व की सरकार ने कहने को तो काफी प्रयास किए लेकिन धरातल पर इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है। सरकार के प्रयासों का असर होता तो रोजाना प्रदेश के किसी न किसी जिले से किसानों की आत्महत्या की खबरें न आतीं। कई बार सरकारों या सियासी पार्टियों की ओर से की गई घोषणाओं से भी किसान भ्रमित होते हैं। विधानसभा चुनाव के पहले प्रदेश में कुछ पार्टियों ने किसानों के कर्ज माफी को लेकर फार्म भी भरवाए थे। कदाचित किसान भी उम्मीद लगा बैठे थे कि जो भी पार्टी सत्ता में आएगी कर्ज तो माफ करेगी लेकिन निराशा ही हाथ लगी। छह माह बाद भी उनकी समस्या हल नहीं हुई है। सरकार अब इसकी जांच करवाने की बात कर रही है कि किसानों पर इतना कर्ज कैसे बढ़ गया। चीफ प्रिंसिपल सेक्रेटरी की मानें तो प्राइमरी एग्रीकल्चर सोसायटी को किसानों के कर्ज का विस्तृत ब्योरा जुटाने को कहा गया है। सरकार इस बात की जांच करवाएगी कि कृषि क्षेत्र से राज्य को लगभग सत्तर हजार करोड़ की आय होती है, लेकिन किसानों का कर्ज एक लाख करोड़ कैसे पहुंच गया। हैरानीजनक है कि जब नियमानुसार एक एकड़ पर खेती पर चालीस हजार रुपये ही लोन मिल सकता हैं तो पांच-पांच एकड़ वाले किसानों पर बीस-पच्चीस लाख रुपये का लोन कैसे खड़ा हो गया। साफ है कि बैंकों ने भी लोन देने में नियमों का पालन नहीं किया। किसानों द्वारा लोन के पैसे खेती की बजाए अन्यत्र खर्च करने की बात भी समय समय पर सामने आती रहती है। ऐसा तभी होता है जब बैंकों से उन्हें नियमों को दरकिनार करके ज्यादा लोन मिल जाता है। सरकार को निश्चित रूप से यह पता करना चाहिए कि इतना ज्यादा लोन नियमों के खिलाफ बैंकों ने कैसे दे दिया। भविष्य में किसानों को लोन देने में बैंकों द्वारा नियमों का उल्लंघन न हो यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। प्रदेश सरकार ही नहीं, केंद्र सरकार को भी किसानों के कर्ज की समस्या को गंभीरता से लेते हुए इसका हल निकालना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]