स्कूली वाहन तमाम रियायत व व्यवहारिक तौर पर मिलने वाली छूट का लाभ तो लेते हैं, मगर सुरक्षा के नाम पर मानकों को पूरा नहीं करते।

उत्तर प्रदेश के एटा में जनवरी में हुए दर्दनाक सड़क हादसे ने देशभर में स्कूली वाहनों की सेवाओं व व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए थे। उत्तराखंड भी इस तरह के सवाल उठने लाजिमी हैं। दरअसल, स्कूली वाहन तमाम रियायत व व्यवहारिक तौर पर मिलने वाली छूट का लाभ तो लेते हैं, मगर सुरक्षा के नाम पर मानकों को कभी पूरा नहीं करते। स्कूल बसों को प्रति सीट के हिसाब से टैक्स में छूट मिलती है मगर अभिभावकों को फीस में कोई छूट स्कूल प्रबंधन की ओर से नहीं दी जाती। अब उत्तराखंड परिवहन विभाग ने स्कूल बसों पर शिकंजा कसते हुए इन्हें तीन श्रेणी में बांटने व प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत अलग-अलग टैक्स लगाने की योजना बनाने का जो फैसला लिया है, वह वाकई स्कूल प्रबंधकों की मनमानी रोकने में कारगर साबित होगा। प्राइमरी, सेकेंड्री स्कूल व प्रोफेशनल कालेजों की बसों को इनमें शामिल किया गया है। इस तरह की लगाम इसलिए भी जरूरी है कि परिवहन विभाग में पंजीकृत होने वाली स्कूल बसों का टैक्स शेष प्राइवेट बसों की अपेक्षा काफी कम है। प्रदेश में पहले स्कूल बसों को अतिरिक्त कर से राहत मिलती थी। ऐसे में कई बार ये बसें पंजीकृत तो स्कूल के नाम पर होती थी लेकिन स्कूल के बाद इनका इस्तेमाल प्राइवेट बुकिंग में भी किया जाता था। इस कारण हाईकोर्ट के निर्देशानुसार स्कूल बसों का रंग पीला किया गया, मगर स्कूलों से अनुबंध करने वाली बसें किसी तरह इस दायरे से बाहर रहीं। वर्तमान में टैक्स की व्यवस्था के हिसाब से स्कूल बस से तीन महीने के लिए 30 रुपये प्रति सीट के हिसाब से टैक्स वसूल किया जा रहा है, जबकि निजी व्यावसायिक बसों के लिए यह दर 100 रुपये से 120 रुपये प्रति सीट है। देखने में यह आया है कि स्कूलों के साथ अनुबंध करने वाले वाहन स्वामी अब प्रदेशस्तर का कांट्रेक्ट कैरिज परमिट ले रहे हैं, ताकि जब स्कूल बंद हो तो बसें निजी मार्गों पर चलाई जा सकें। देखा यह भी गया है कि भले ही स्कूल बसें एक नियत दर से टैक्स भुगतान करती हैं मगर शैक्षिक संस्थान विद्यार्थियों से मासिक किराए के रूप में भारी-भरकम रकम लेते हैं। स्कूलों की इसी मनमानी पर लगाम को परिवहन विभाग बसों को तीन श्रेणी में लाने की योजना बना रहा है। इनमें श्रेणीवार टैक्स निर्धारण किया जाएगा, यानी निजी संस्थानों की बसों पर सबसे ज्यादा टैक्स लगेगा। अभी सभी श्रेणी की स्कूल बसों से अन्य बसों की तुलना में चार गुना कम टैक्स लिया जा रहा है, जबकि स्कूल प्रबंधन अभिभावकों को कोई राहत नहीं देते।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]